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पाताधMated प्रत्येक २.फरेवल, परिगृहीत शिर मारत.मम्न के क्षलिं कृत्वा संसा मेरोमा 'वयणाइ' पनानिकथनानि निवेदयन्ति स्म । ततस्तदनन्तर स कुम्भको राजा तेपा दतानामन्तिके-समीपे, एतमय 'जितशत्रप्रमुग्ना पडपि राजानो मल्ली
छन्ति इत्येतद्रप 'त्तिान्त अत्या" ओसुरुत्ते' आशुरु शोन क्रोषाविष्टा, याद-विवालिका-रेखात्रययुता भृकुटि-भ्र कौटिल्य ललाटे कुन् पर्व-त्रस्य मणिकारण, अादी हे दूताः 'नो दास्यामि' सल अह युष्मा राजम्यो मेल्ली विदेहराजवरकन्याम्' इति कृत्वांइत्युक्त्या तान् पंडपि दूतान् असत्कृत्य, तेणेव उवागच्छति ) प्रवेश पार जहा कुभक राजा थे-वहा.आये,(उजा गच्छित्तो पत्तेय । करयल परिगरिय मिरसांवत्त दर्सन मत्थए अजलि कटु साण २ राईण क्षणाणि निवेदेति) वरा आफर उन सबोंने भिन्न २ रूपासे,कुभक राजा को दोनों हाथों की अजलि बनाकर और उसे मस्तक पर रखकर नमस्कार किया-नमस्कार कर के फिर उन्होंने क्रमश.अपनो २ राजा का करना उसे सुनाया-(तएण से कुमर तामा दुर्याण अन्तिए, एयम? सोच्चा आसुरुत्ते जावातिवलिय भिडिं पर वयासी) जितशत्रु प्रमुग्व छहो ही नृपति मेरी पुत्री मल्लीमारी को चाह रही हैं। इस प्रकार । का समाचार उन दूतों के पास से सुनकर घह कुमक राजा इकदम क्रोधित हो गया और उसी समय उसका त्रिवलियुक्त भ्रकुटि मस्तक पर चढ़ गई।
" , इसी आवेश में उसने उन दतो से इस प्रकार कहा-(न देमिण अह. तुम्भ मल्ली, विदेह, रायवरकपण, त्ति कटुते, छप्पिा दृए असक्का
(उवागच्छित्ता पत्तेय २ करयलपरिगहिय सिरसावत्त, दसनह मत्थए अजलिं कटु साण २ राईण वयणाणि, निवेदेति।), ।। । .
છે. ત્યાં જઈને તેઓ બવાએ જુદા જુદા રૂપમાં કુંભક, રાજાને બને હાથની અ જલિ બતાવીને અને તેને મસ્તકે મૂકીને નમસ્કાર કર્યા અને નમસ્કાર કરે, તેઓએ વારાફરતી પિતપોતાના રાજાનો સંદેશ તેમને કહી સંભળાવ્યો
"(तएण से कुंभएतेसिं याण अतिए एयमंट्ट सोच्चा आसुसत्तेजाव तिव लिये मिउडि एच वयासी') f?' છત છએ છે રાજા માળ પુત્ર મલ્લીકુમારીને ચાલે છે આ જાતનો સંદેશ તેના મોથી સાભળીને કુંભ રાજા' ! એકદમ ગુસ્સે થઈ ગયાં અને ત્રણે રેખાઓવાળી તેમની ભ્રકુટી ભમર વક થઈ ગઈ ,
यता मावशमा २० ते इतने ही समापु, --} } , (नादेमि णाअह : तुम्भ । मल्ली विदेहरायवर कण्णात्तिाका ते छप्पिए
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