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________________ ३४४ -- - - ___ गाताधर्मकथा नगिरिसाम्पाद् अअनगिरेः कन्दरमिर तन्मुस प्रतिमातीतिमाव । 'अग्गिजालुग्गिल्तरयण ' अग्निबालोगिरद् पदनम् अग्निमाला उद्विरद-बहिष्कुम्न दन मुख यस्य स तथा तम् , यस्य मुखाद् अग्निज्जालगनिम्सरति तथाविधमित्यर्थः, 'आऊसिय अक्खचग्मउन्हगडदेस' आयुपिताक्षचपिकृष्ट गण्डदेशम्-आयुषितपलियुक्तम् यदक्षचर्म-शको जलार्पण कोशस्तपदपाटो-अन्तः भविष्टी गण्डदेशी यस्य स तथा तम् , ' चीणचिडियमगणास ' चीनचिपिट वक्रमग्ननास-चीना -इस्त्रा, चिपिटा-निम्ना, पका-कुटिला, भग्ना-भग्नेन अयोरनोपरिकुट्टनेन प्र मृतेच नासा यस्य स तथा त, चिपिटनासिकारन्तमित्यर्थ ' रोमागयपमधमेत मारुतनिट्टरवरफरसयुसिर ओभुग्गणासियपुड' रोपागतधमधमायमानमारुतनि समान था । यह स्वय अति विशाल और अत्यत काले वर्ण का था इस लिये अजनगिरि के जैसा था-तथा इस की जिह्वा और तालुये दोनों अतिरस्त थे इस लिये वे हिहगुल के समान लाल थे। इसलिये सूत्रकार ने उस के मुख को अजनगिरि की रिंगुलक से भरी हुई कदरा से उपमित किया है । इस के मुग्व से अत्यन्त लाल जिह्वा और तालु वाला होने के कारण ऐसा ज्ञात होता था कि मानो अग्नि की ज्वाला ही याहर निकल रही है। (आऊसियअक्ख चम्म उइगडदेस, चीणचिपिडवकभग्गणास रोसागयधमधमेतमारुत निठुर खरफरुसमुसिरओभुग्गणासिपुयड, घाटुन्भडरइयभीसणमुह) इस के दोनों कपोल (गोल) पानी को खीच ने वाले शुष्क वलि युक्त चरस के समान भीतर को घुसे हुए थे। नामिका इस की इस्व चिपटी थी । टेडी इस नासि का के छेदों से जो श्वासोच्छ्वास निकलता અતિશય કાળાર ગનુ હતુ એટલા માટે જ તે અજનગિરિ જેવું હતું તેની જીભ અને તાળવું બને ખૂબજ લાલ હતા તેથી તેઓ હિંગળોક જેવા લાલ હતા સૂત્રકારે અજનગિરિની હિંગળકથી ભરેલી કદરાની તેના મોની જે ઉપમા આપી છે તેની પાછળ એજ કારણ છે તેનું તાળવું અને જીભ ખૂબજ લાલ હોવાથી એમ લાગતું હતું કે જાણે તેના મોમાથી અગ્નિની જવાળાઓ બહાર નીકળી રહી હોય (आऊसिय अक्ख चभ्म उटगडदेस चीण चिपिडवक भग्गणास रोसागय धम मेत मारुत निठुरखर फरुस झुसिरमओ भुग्गणासियपुड धाडुब्भडरइयभीसणमुह તેના બંને ગાલ કેસની જેમ કરચલીવાળા જેમ મોમાં પિસી ગયેવા હતા નાક તેનું નાનું અને ચપટુ હતુ ત્રાગા નાકના છિદ્રોથી શ્વાચ્છવાસ
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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