________________
-
-
३१८
तापकथाMet सुपतिष्ठित कूर्मोन्नतचारुचरणा, मुमतिष्ठिती-पुष्ठसंस्थानब ती कर्मामती कूमें पृष्ठपदुपर्युन्नती चारू-मुन्दरी चरणौ यस्या मा तथा, वर्णक वर्णन विशेषतो जम्बूद्वीपप्रज्ञप्त्यादौ द्रष्टव्यम् । ___ततः खलु मतिबुद्धिभूपः मुद्देरमात्यम्यान्तिके एतमर्थ मल्लीकुमारी सौन्द
र्यादि गुणवर्णनरूप श्रुलाश्रयण गोचरीकत्य, निशम्यर्थतोऽचार्य श्रीदामकाण्डजनितहर्प =श्रीदामकाण्डगुणश्रवणमजाममोदः सन् दूत शन्दयति आहयति, शब्दयिता एमगादीव-हे देवानुप्रिय ! गफ सलु व मिथिला राजधानी, तत्र खलु कुम्भस्य राज्ञो दुहितर प्रभावत्या देव्या आत्मना मल्ली विदेहवररामक मिन् ! वह विदरराज की उत्तम कन्या मल्ली कुमारी अच्छे आकार वाले, कृर्म की पृष्ठ के समान उन्नत सुन्दर चरण वाली है। इस का विशेप वर्णन जदीप प्रज्ञप्ति आदि में किया गया है।
(तएण पडिघुद्धी सुबुद्धिस्स अमच्चम्स अतिए एयमट्ट सोच्चा गिसम्म, सिरिदामगड जणितहासे दूय सदावेइ ) इस प्रकार श्रीदाम काड के गुणो के श्रवण से अत्यधिक हर्पित हुए प्रतिबुद्धि राजा ने सुयुद्धि अमात्य के मुख से मल्ली कुमारी के सान्दर्य आदि गुणों का घर्णन सुनकर और उसे हृदय में निश्चित कर दूत को बुलाया (सहा वित्ता एव पयासी) बुलाकर उससे ऐसा कहा (गच्छाहिण तुम देवाणुप्पिया मिडिल रायहाणि) हे देवानुप्रिय ! तुम मिथिला नाम की राजधानी को जाओ-(तत्थ ण कुभगस्प्त रणो धूय पभारईए देवीए सुपइट्रिय कुम्मुन्नय चारूचरणा वन्नओ) पाभिन्। विहेड रानी ઉત્તમકન્યા મલીકુમારી સરસ આકારવાળા કાચબાની પીઠના જેવા સુંદર ઉન્નત ચરણવાળી છે (તેમનું વિશેષ વર્ણન જ બૂદીપ પ્રજ્ઞપ્તિ વગેરે મા કર વામા આવ્યુ છે
(तएण पडिद्धि सुयुद्धिस्स अमच्चस्स अतिए एयमट्ट सोच्चा णिसम्म सिरिदामगडजणितहासे दूय सद्दावेइ)
આ પ્રમાણે સુબુદ્ધિ અમાત્યના મેઢેથી શ્રીદામકાના ગુણ શ્રવણથી તેમજ મલીકુમારીના સૌદર્ય વગેરે ગુણોની ચર્ચા સાંભળીને તેને હાથમા અવધારિત કરીને ખૂબજ હર્ષિત થયેલા પ્રતિબુદ્ધિ રાજાએ દૂતને બેલાગ્યા (सहावित्ता एव वयासी) मोसावीनतेने धु-(गच्छाहि ण तुम देवाणुप्पिया ! मिहिल रायहाणिं) पानुप्रिय ! तमे मिवियानी पानीमा नया
(तत्थण कुभगस्स रणो ध्य पभावईए देवीए अतय मलि विदेहवरराय फणग मम भरियत्ताए परेहिं )