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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ षोरलाधिपतिरूपनिरूपणम
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साम= सान्खनमयोगः, दण्ड : = युद्ध, भेदः = शत्रुपक्षे मन्त्रिसैनिनादिभिर्विरोधोत्पादनम्, तेषु कुशलः = निपुण । ततस्तदनन्तर खलु पद्मावत्या देव्या अन्यदा कदाचित् नागयज्ञ कथाप्यासीत् = नागमहोत्सव दिवस समायात इत्यर्थः । ततस्तदा खलु सा पद्मावती देवी नागयज्ञ नागमहोत्सव दिवसम् उपस्थित = समायात ज्ञात्वा यत्रैव प्रतिबुद्धिर्नाम इक्ष्वाकुराजस्तत्रैवोपागच्छति । उपागत्य करतल परिगृहीत शिरआवर्त्त दशनख मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा एव = वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् हे स्वामिन् । एव खलु मम क्ल्ये आगामिदिवसे नागयज्ञाश्वापि भविष्यति, तद्= तस्मात् इच्छामि यह अमात्य साम, दण्ड, और भेद नीति में कुशल था । शत्रु को शांति से वश करना यह साम नीति है, युद्ध से वश करना - उसे परास्त कर अपने आधिन बनाना -यह दण्ड निति है- शत्रु की सेना मे मन्त्री तथा सैनिको में विरोध उत्पन्न कराना इस का नाम भेद है । (तएण पउमावईए देवीए अन्नया कयाइ नागजन्नए यावि होत्था ) एक समय की बात है कि पद्मावती देवी के यहा नागयज्ञ के महोत्सव का दिन आया । (तरण सा परमावई नागजन्न मुवट्ठिय जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी- तेणेव उवागच्छ३) अत: वह पद्मावती देवी नाग यज्ञ - नागमहो त्सव का दिन आया हुआ जान कर जहाँ अपने पति प्रतिबुद्धि राजा थे वहा गई । (उवागच्छित्ता करयल परिग्गाहिय सिरसावत दसनह मत्थए अजलि कट्टु एव वयासी) वहा जाकर उस ने राजा को दोनों हाथों की अजलि बनाकर और मस्तक पर रखकर नमस्कार किया बाद में वह इस प्रकार कहने लगी- ( एव खलु सामी मम कत्ल नाग जन्नए
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હતા. શત્રુને શાતિથી
તે અમાત્ય સામ દઢ તેમજ ભેદ નીતિમા કુશળ વશકરવે તે સામનીતિ છે. યુદ્ધ લડીને વશ કરવે, તેને હરાવવે અને પેાતાને આધીન કરવા તે ઇડનીતિ તે શત્રુની સેનામા મત્રી તેમજ સૈનિકામા विशेध उत्पन्न व ते लेह नीति छे ( तएण परमाase देवीए अन्नया कयाइ नागजन्नए यात्रिहोत्या ) मे समयनी बात छे है पद्मावती हेवीने त्या नागयज्ञ नो महोत्सव हिवस भाव्या ( तपण सा पउमावई नागजन्नमुवट्टिय जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धि तेणेत्र आगच्छ ) नाग महोत्सव ना दिवसनी लय थता पद्मावती देवी प्रतियुद्ध राजनी पासे ग ( उवागच्छित्ता करयर परि गाहिय सिरसावत दसनह मत्थए अजलिं कट्टु एव वयासी) त्या नेतेले जने હાથેાની આ જિલ બનાવીને તેને મસ્તકે મૂકીને નમસ્કાર કર્યાં અને ત્યારપછી કહ્યુ ( एव खलु सामी मम कल्ल नाग जन्नए यात्रि भविस्सर त इच्छामि