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अनगारधर्मामृतवपिणी टीका अ० ८ प्रभावतीदेवी दोहदादिनिरूपणम्
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जल थलइत्यनन्तर भासुरपभूषण दसद्धवन्नेण ' इति सग्रह, माल्येन पुष्प जातेन यावत्-अत्र यावच्छब्देन - ' अत्युयपञ्चत्थुयसि ' इत्यारभ्य ' अग्वाय माणीओ' इतिपर्यन्तस्य ग्रहणम्, दोहद् विनयति पूरयति । ततः खलु सा प्रभावती देवी प्रशस्तदोहदा यावद सपूर्ण दोहदा समानित दोहदा विहरति । अथ भगतस्तस्य तीर्थंकरस्य सकल जगत्क्ल्याणकर जन्मकदाऽभवदिति जि ज्ञासायामाह - ' तएण ' इत्यादि ।
ततस्तदन्तर खलु सा प्रभावती देवी नवसु मासेषु बहुप्रतिपूणेपु = सर्नथा सपूर्णेषु तदनन्तरम् अष्टमे रात्रिंदिवेषु व्यतीतेषु योऽसौ हेमन्तानो हेमन्त ऋतु सज्ञकाना मार्गशीर्ष दिफाल्गुनान्ताना प्रथमो मासः, द्वितीयः पक्षः मार्गशीर्ष शुद्धः मार्गशीर्षमासस्य शुद्ध शुक्लः पक्षो वर्तते, तस्य - खलु एकादश्या तिथौ पूर्वरात्रापररात्रकालसमये मध्यरात्रे अश्विनी नक्षत्रे योग = चन्द्र योगमुपागते- प्राप्ते आदिकेपुष्पगुथे हुए हैं और जो नेत्र को सुख देने वाले एव सुखस्पर्श है जिसमें से सुगध ही सुगंध चारों ओर फैल रही है रानिके पास लाकर उपस्थित किया । (तएण सा पभावती देवी जल थलय जाव मल्लेण जाव दोहल विणेड ) इसके अनन्तर उस प्रभावती देवीने जल थलके विकसित पच वर्ण वाले प्रभूत पुष्पों से समाच्छादित हुई शय्या पर बैठकर शयन कर श्रीदामकाण्ड को कि जो पाटल (गुलाब) आदि के पुष्पो से गुथा हुआ था यावत् गध को फैला रहा था सूप कर अपने दोहले की पूर्ति की । (तरण सा पभावती देवी पसत्य दोहला जाव विहरह, तएण सा पभावई देवी नवण्ह मामाण बहु पडिपुण्णाण अट्टमाण य रति दियाण जे से हेमन्ताण पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे तरसण एगारसीए पुग्वरत्तावर त्त० ओस्सिणीनक्खत्तेण जोगमुवागएण उच्चद्वाणहिएस गहेसु पमुइयपक्कीलिए जणवण्सु आरोग्गारोग्य एगू
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भोटो लारे श्रीधाम | पशु वानव्य तरी त्या सान्या (तएण सा पभा वती देवी जलथलय जाव मल्लेण जाव दोहल विणेइ ) त्यार माह प्रभावती દેવીએ જળના વિકસિત પાચરગના પુષ્પાથી સમાચ્છાદિત શય્યા ઉપર બેસી ને, શયન કરીને, પાટલ વગેરેના પુષ્પાથી ગૂંથાયેલા સુવાસિત શ્રીદામકાર્ડને સુધીને પોતાના દેહદની પૂતિ કરી
(तएण सा पभावती देवी पसत्थदोहला निरइ, तएण सा पभानई देवी नवह मामाण बहुपडिपुण्यात अद्वमाणयराइ दियाण जे से हेमताण परमेमासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे तस्सण एगारसीए पुण्वत्तावरत आस्सिणीनक्खत्तेण जोग