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ज्ञाताधर्मकथा
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भाग पश्यति, तथा यत् तप पूर्वकृत पुनरात्तमेत्तर क्रियते तत् मिनिकी डितमित्युच्यते । तप कर्मोपसपद्य विहरन्ति । तत्र शुल्क सिहनिक्रीडित तपः कर्म केन प्रकारेण तैः कृतमित्याकाङ्क्षायामाह - तजहा ' इत्यादि चतुर्थ चतुर्थभक्त मे कोपनासरूप कुर्वन्ति कृत्वा सच्वकामगुणिय ' सर्वकामगुणित = सर्वे कामगुणा दुपदधिघृततैलमधुररूपा विकृतय सजाता यत्र तत् सर्वकामगुणितम् इदपारगक्रियायाविशेषण, 'पारेति ' पारयन्ति =पारण कुर्वन्ति । पारयित्वा पण्ठ कुर्वन्ति तत पारण कृत्वा पष्ठभक्त द्वयुपवासरूप तपः कुर्वन्ति इत्यर्थे कृत्वा तरह सिंह अपने पश्चात् भाग का निरीक्षण करता आगे चलता है उसी प्रकार जो तप पूर्वकृत तपो को साथ लेकर आगे २ किया जाता है उस का नाम सिंहनिष्कीडित तप है । (तजा ) पर क्षुल्लक सिंह निष्की डित तप उन्हो ने किस प्रकार से किया इस बात को अब सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं । (चउत्य करेंति, करिता सन्ध कामगुणिय पाति, पारिता छ करेंति, करिता चउत्य करेंति करिता अट्टम करेंति, करिता छट्ट करेंति, करिता, दसम करेंति, करिता अट्टम करेंति, करित्ता दुवा लसम करेंति, करिता दसम करेंति, करिता चाउदसम करेंति करिता दुवालसम करेति) उन्हो ने पहिले चतुर्थ भक्त-एक उपवास किया । एक उपवास करके विजय सहित पारणा किया पारणा करके फिर छट्ठभक्त - दो उपवास किये दो उपवास करके फिर उन्हो ने पारणा किया बाद मे चतुर्थ भक्त किया । चतुर्थभक्त करके पारणा किया फिर तीन उप આગળ ચાલે છે તે પ્રમાણે જ જે તપ પૂર્વે કરેલા તાને સાથે લઇને मागण उरवामा आवे छे, ते तय सिद्ध निष्ठीडित हेवाय छे ( त जहा ) અનગારીએ આ ક્ષુલક સિંહ નિષ્ક્રી િત તપ કેવી રીતે ? તે વિષે સૂત્રકાર સ્પષ્ટીકરણ કરતા કહે છે
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( उत्थ करेंति, करिता सव्वकामगुणिय पारेति, परिता, छट्ठ करेंति करिता चउत्थ करेंति, करिता अहम करेंति, करिता छड करे वि, करिता दसम कति करिता अहम करेंति, करिता दुगलसम करेति करिता चाउदसम करे ति करिता दुरालसम करे ति ) તેઓએ સૌ પ્રથમ ચતુથ ભક્ત-એક ઉપવાસ કર્યો એક ઉપાસ કરીને વિગય મહિત પારણા કર્યા પારણા કર્યાં ખાદ ફરી છઠ્ઠભક્ત-બે ઉપવાસ કર્યા એ ઉપવાસ કરીને તેએએ પારણા કર્યો ત્યાર ખાદ ચતુર્થાં ભક્ત કર્યા બાદ પારણા કર્યો ત્યાર પછી ત્રણ ઉપવાસ રૂપ અષ્ટમ
ભકત કર્યાં. અષ્ટમ ભકત