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________________ २४० माताधर्मकथा भोग समर्थः = उन्युक्तालभार विज्ञातपरिणतमानः सर्वकलाइशलो भोगसमयों जात इत्यर्थः ॥ सू०१॥ मूलम्-तएण त महब्बल अम्मापियरो सरिसियाणं कमलसिरी पामोक्खाणं पंचण्ह रायवरकन्नासयाणं एगदिवसेणं पाणि गेण्हावेति, पंच पासायसया पंचप्सयदाओ जाव विहरह, थेरागमणं, इदकुंभे उजाणे समोसढा । परिसा निग्गया, बलो विनिग्गओ धम्म सोच्चा णिसम्म जं नवरं महव्वल कुमारं रज्जे ठावेइ जाव एकारसंगवी बहणि वासाणि सामण्णपरियायं पाउणित्ता जेणेव चारुपयए मासिएणं भत्तेणं सिद्धे सू०२॥ टोका-ततस्तदनन्तर खलु त 'महाल' महारलनामक कुमार मातापितरौ 'सरि सियाण ' सदृशीना कुलेन वयमा योग्याना कमलश्रीपमुखाणा, पश्चाना राजवरक न्याशताना-पञ्चशताना रानवरकन्यानाम् एफदिवसे पाणि ग्राहयता, पञ्च धीरे २ वह महायल पुत्र बाल्यकाल को पूरा करके यौवन अवस्थी को प्राप्त हुआ। अवस्थानुसार वह विकसितजान वाला भी होगया सर्वकलाओं में कुशलमति बन गया और-पचेन्द्रियों के भोग भोगने लायक भी हो गया । सूत्र "१" 'तएण त मयल ' इत्यादि टीकार्थ-(तण्ण) इसके बाद (त मच्चल अम्मापियरो) उस महा बल कामाता पिताने (एगदिवसेण) एक ही दिन के भीतर (सरिसियाण कमलसिरी पामोक्खाण पचण्ह रायवरकन्नासयाण) समान कुल, वय वाली कमलश्री आदि पाचसौ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ ( पाणि સમય જતા મહાબલ બચ પણ વટાવીને જુવાન થ ઉમરના વધારાથી વધીને તે સવિશેષ વિકાસ યુક્ત જ્ઞાનવાળા ગો તે બધી કળાઓમાં કુશળ બુદ્ધિ વાળે અને ૫ દ્રિના ભેગને ભોગવવા ચગ્ય થઈ ગયો સૂત્ર “1” 'तएण महापल 'त्यादि साथ-(तण्ण ) त्यारा (त महब्बल अम्मापियरी) भामसने तेना माता पिता (एगदिवसेण ) 12 हसभा ? (सरिसियाण कमलसिरीपामोक्खा ण पचण्ह रायर कन्नामयाण) સરખા કુળ અને સરખી આયુષ્યવાળી કમળ શ્રી વગેરે પાચસે ઉત્તમ રાજ अन्ययानी साथे (पाणि गेण्हावे ति) ५२९वीडीया (पच पासाय सया पच सय
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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