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मनगार धर्मामृतावणी टीका अ०७ धयसार्थवाहचरिचनिरूपणम् यदा खल्ल अह पुत्रि ' एतान पञ्च शाल्यक्षतान् याचेय तदा खलु त्व मद्यमि मान् पश्च शाल्यक्षतान् प्रतिदया 'इति, स नन पुत्रि । अर्थ. समर्थ ? उजिप्रता माह- हन्त ! अस्ति-एतत्सत्यमस्ति । श्रेष्ठीपाह- 'त' तत्-तस्मात् खलु त्व हे पुत्रि ! मह्य तान् ‘पडिनिज्जापहि प्रतिनिर्यातय-प्रतिममर्पय । तत खल सा उज्झिता यस्य सार्थवाहस्य एतमय सम्यक प्रतिशृणोति-स्वीकरोति, प्रति श्रुत्य यत्रैव कोप्ठागार तत्रोपागच्छति, उपागत्य 'पल्लाओ' पल्लात्-शालि कुलघरवग्गस्स पुरओ तव हत्यसि पच सालि अक्खए दलयामि) बुलाकर उससे ऐसा कहा हे पुत्रि ! आज से गत पांचवें वर्ष में मैंने जो इन मित्र, ज्ञाति आदि परिजनों के और चारों पुत्रवधूओं के कुल गृहवर्ग के समक्ष तुम्हारे हाथ में पाच शारि-उक्षतों को दिया था। (जयाण अह पुत्ता एए पच सालि अक्खए जागजा) और हे पुत्रि ऐसा कहा था कि जब में इन पाच शालि-अक्षतो को मांगू (तयाण तुम मम इमे पच सालि अक्सए पडिदिजाएसि त्ति) तब तुम मुझे इन पाच सालि-अक्षतो को पीछे वापिस दे देना (से गूण पुत्ता अहे समहे) हे पुत्रि ! कहो यही बात कही थी न ? (हंता अस्थि ) तब उज्झिताने कहा-हाँ यही बात कही थी (तण्ण पुत्ता ! मम ते सालि अक्खए पडिदिज्जाएहि ) तो पुत्रि । तुम मुझे उन पाच शालि अक्षतो को अब पीछे वापिस दे दो । (तण्ण सा उज्झिया धण्णस्स सत्यवाहस्स एयम सम्म पडिसुणेइ पडिसुणित्ता जेणेव कोठागार तेणेव उवागच्छद)
બોલાવીને તેને કહ્યું કે હે પત્ર! આજથી પાચ વર્ષ પહેલા મે તને આ બધા મિત્ર જ્ઞાતિ વગેરે પરિજને અને ચારે પુત્રવધૂઓના સગા વહાલાઓની સામે તમારા હાથમાં પાચ શાલિકણે આપ્યા હતા (जयाण अह पुत्ता एए पचसालि अक्खए जाएज्जा)
અને એમ કહ્યુ હતુ કે જ્યારે હું તમારી પાસેથી આ પાચ શાલિકણે માગુ (तयाण तुम मम इमे पच सालि अक्खए पडिदिज्जएसित्ति)
त्या३ त भने २५ पाये शालि। पाछ। मापन (से गूण पुत्ता अट्रे समठे है पतिसमे तभन मेरी पाती तीन ? (हता अत्यि) त्यारे alrsताये घु- " मे पात ४ी ती " तण्ण पुत्ता ! मम ते सालि अक्सए पडिनिज्जाएहि) तो पुति! पाये शालि तमे भने પાછા આપી
(तएण सा उज्झिा धण्णस्स सत्यवाहस्स, एयम सम्म पडिमुणेइ पडिसुणिता जेणेव कोडागार तेणेच उवागच्छद)