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साताधर्मव्यास मूलम्-तएण से इंदभई जायसङ्के० समणस्स३ एवं वयासी -कहण्णं भते। जीवा गुरुयत्त वा लहुयत्तं वा हव्वमागच्छति ? गोयमा । से जहा नामए केइ पुरिसे एगं महं सुक्क तुव णि. च्छिड्ड निरुवहयं दंभेहिं कुसहि वेढेइ, वेढित्ता मट्टियालेवेणं लिपइ लिपित्ता उण्हे दलयइ, सुकं समाण दोच्चपि दम्भेहि य कुसेहि य वेढेइ वेढित्ता मटियालेवेण लिपइ लिपित्ता उण्हे सुक्क समाणं तच्चपि दभेहि य कुसेहि य वेढेइ वेढित्ता मट्टियालेवेण लिंपइ । एवं खल्ल एएणुवाएणं अतरा वेढेमाणे अंतरा लिपेमाणे अतरा सुकवेमाणे जाव अट्रहि मटियालेवेहि आलिपइ, अस्थाहमतारमपोरिसियास उदगसि पविखवेजा, से णूण गोयमा । से तुवे तेसि अण्ह मटियालेवाण गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुयभारियत्ताए उप्पि सलिलमाइवइत्ता अहे धरणियलपइहाणे भवइ। एवामेव गोयमा ! जीवा वि पाणाइ. वाएण जाव मिच्छादसणसल्लेणं अणुपुत्वेण अटकम्मपगडोओ समजिणति, तासि गुरुयत्ताए भारियत्ताए गुरुयभारियताए कालमासे काल किच्चा धरणियलमइवइत्ता अहे नरगतल पइट्ठाणा भवति, एव खल्लु गोयमा । जीवा गुरुयत्त हव्वमागच्छति ॥ सू० २ ॥ दभूई अदूरसामते जाच धम्मज्झाणीवगए विहरह) श्रमण भगवान् महावीर के प्रधान अतेवासी जिनका नाम इन्द्रभूतिथा उचित स्थान परबेठे हुए धर्म भ्यान में तल्लीन थे। सूत्र-१ विहरइ) श्रम समपानना प्रधान सतवासी धन्द्रभूति लयित स्थानमा ધર્મ ધ્યાનમાં લીન હતા | સૂત્ર ૧ |