________________
अनगारधर्मामृतपणी टीका अ० ५ शैलकराजऋपिचरितनिरूपणम्
१५७
सुखसुप्त पादयोः सवध्यति । ततः खलु स पाथकः शैल के नैवमुक्तः सन् भीतः = भययुक्तः त्रस्तः = उद्विग्न', त्रसितः कम्पितः करतलपरिग्रहीत शिरआवर्त मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा एव - पक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् - ' अहष्ण ' अह सलु भदन्त ! पान्थकः कृतकायोत्सर्ग' 'देवसिय' दैवसिक= प्रतिक्रमण मतिक्रान्तः । हे भदन्त । अह खलु पान्यकनाम भवदीयशिष्यः कायोत्सर्ग कृत्वा दैनिक प्रतिक्रमण कृतवान्, अधुना चातुर्मासिक क्षमापयन् देवानुमियं वन्दमानः शीर्पेण पादयो' सघट्टयामि, हेदेनानुमियाः तत् तस्माद् क्षमभ्व माम्, क्षमध्व मे ममापराध, 'तुमज्जिए ) अरे ! यह कौन ऐसा हैं जो श्री ट्री से रहित बुद्धिवाला हुआ यहा विना बुलाये आ गये है और ण मम सुष्पसुत्त पाएस सघट्टेड ) सुख पूर्वक सोए हुए मुझे पैरों मे स्पर्श कर रहा है । (तएण से पथ सेलण एव बुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिय करयल० कट्टु एव वयासी ) इस प्रकार शैलक के द्वारा कहे जाने पर वह पाथक अनगार डर गया, उद्विग्न हो गया, रोम २ उसका कप गया। उसी समय उसने दोनों हाथों की अजलि जोड कर और उसे मस्तक पर रखकर इस प्रकार कहा - अहण भते पवए कयकाउसग्गे देवसिय पीडिक्कमणं पडिक्कते चाउमा सिय खामेमाणे देवाणुपिय ! वदमाणे सीसेणं पाए समि) हे भदत ! मैं हूँ आपका शिष्य मैं पांथक ने कायोत्सर्ग करके दैवसिक प्रतिक्रमण कर लिया है । अब चातुर्मासिक दोषों की क्षमा कराने निमित्त हे देवानुप्रिय आपकी बदना करते हुए मैं आपके चरणों का स्पर्श किया है । (त खम तुम देवाणुध्विया । खमतु मेऽवराह तुमण्णं
४ - ( से केसण भो एस अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए ) गरे । आा अ છે ? જે શ્રી હી થી રહીત મૂખ ખેલાવ્યા વગર જ અહીં આવતા રહ્યો છે ( ण मम सुहृदवसुत पाएसु सघट्टेइ ) ने सुमेधी विश्राम इश्नारा भने पशोभा स्पर्श पुरी रह्यो छे (तएण से पथए सेलएण एव वुत्ते समाणे भीए तत्थे तसिय करयल० पट्ट एव वयासी ) शैस ऋषिनी मा वात सालजीने पाथ અનગાર ડરી ગયા, ઉદ્વિગ્ન થઈ ગયા અને તેમના અણુ અણુમા ભય બ્યાસ થઈ ગયા તરત જ તે અને હાથેાની અજલિ મન્તર્ક મૂકીને આ प्रभाचे आहेवा साग्या - ( अण्ण भते पथए कयकाउसग्गे देवसिय पडिक्कमण पढिवक्कते चाउम्माखिय सामेमाणे देवानुप्पिय ! व दमाणे सीसेण पाएमु सट्टेमि ) હે ભદત ! આતે હું છુ આપને શિષ્ય પાથક મે કાયાત્મગ કરીને દેવસિક પ્રતિક્રમણ કરી લીધુ છે. ચાતુર્માસિક દોષોની ક્ષમાપના માટે તમારા ચરણેામા भे भस्तङना स्पर्श छे ( त समेतु म दवाणुप्पिया ! खमतु मेऽमराह'