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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ शैलकराजक पिचरितनिरूपणम्
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गाराः शिष्यरूपेण सहचरा आसन् तेषु पान्थक शैलकानगारसेवार्थं स्थापयित्वा पान्यकवर्जास्ते सर्वेऽनगाराः पीठफलकादिक प्रत्यये वहिर्जनपदविहार कुर्वन्ति स्मेत्यर्थः ॥ ३१ ॥
मूलम् - तएण से पंथए सेलयस्स सेज्जासथारयउच्चारपासवणखेल सिघाणमल्लओसहभे सज्जभत्तपाणपण अगिलाए विएण वेयावडिय करेइ, तएण से सेलए अन्नया कयाइ कतिय चाउम्मासियसि विउल असण० आहार माहारिए सुबहु मज्जपाणय पीए पुव्वावरण्हकालसमयसि सुहप्पसुत्ते, तरणं
पन्थए कत्तियचाउम्मासियसि, कयकाउस्सग्गे देवसिय पडिकमण पडिक्कते चाउम्मासि पडिकमिउकामे सेलय रायरिसिं खामण्डयाए सीसेण पाएसु सघहेइ, तएण से सेलए पंथपणं सीसेणं पाएसु सघट्टिए समाणे आसुस्ते जाव मिसिमिसेमाणे उट्टेइ, उट्टित्ता एव वयासी-सं केस ण भो एस अप्पत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए जेणं मम सुहृत्पसुत पाएसु संघट्टेइ ? तणं से पथए सेलएण एवं वृत्ते समाणे भीए तत्थे तसिंय करयल क
ठावित्ता बहियां जाव विहरति ) इस प्रकार उन्होंने विचार कियाविचार करके प्रातःकाल जय सूर्य अपनी प्रभा से प्रकाशित होने लगा तब उन्होंने शैलक राजऋषि से पूछकर प्रतिहारिक - प्रत्यर्पणी पीठ फलग शय्या सस्तारक को वापिस दे दिया-वापिस देकर फिर उन्हों ने उन की वैयावृत्ति करने के लिये पावक अनगार को रख दिया । रखकरें फिर वे वहा से बाहर दूसरे देशों में बिहार कर गये | सूत्र ॥ ३१ ॥
ठविता बहिया जाव विहरति ) या प्रभाऐ तेमाओ विचार अय, वियार કરીને જ્યારે સવારે સૂર્ય ઉદય પામ્યા ત્યારે રૌલક રાજઋષિની અન્નામેળવીને પ્રત્યર્પણીય એટલે કે પીક શય્યા સસ્તારને પાછા માપીને રાજૠષિની વૈયાવૃત્તિ માટે પાથક અન ન્ને ના નિયુક્ત કરીને તેઓ ત્યાંથી બહારના બીજા દેશેમા વિહાર કરવા નીકળ્યા ! સૂત્ર ૩૧
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