________________
१३०
शशिधर्मकथासूत्रे
त्तः खलु सशुरुः शुकनामानगार, अन्यदा कदाचित् = अन्यस्मिन् कस्मिंश्चित् काले शैलकपुरानगरात् सुभूमिभागा दुधानात् प्रतिनिष्क्रामति=प्रतिनिर्गच्छति, प्रतिनिष्क्रम्य = प्रति निर्गत्य वहिः = वाले जनपद विहार विहरति । ततस्तदनन्तर खलु सशुकोनगारोऽन्यदा कदाचित्-अन्यस्मिन् कमिश्रित् काले तेन पूर्वोक्तेन स्वशिष्येण अनगारसहस्रेण सार्धं सपरिटतः पूरानुपूर्व्या तीर्थकर गणधर परपरया चरन् ग्रामानुग्राम हिरन्यत्रैव पुण्डरीक = पुण्डरीकनाम्नाममिद्धः परतः यावत् तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य पुण्डरीक पर्यंतमारुह्य पृथिवीशिलापट्टक प्रतिलेरय लिये पथक प्रमुख आदि ५०० सौ अनगारों को शिष्य रूप से वितरित कर दिया । (तरण से सुए अन्नया कयाइ सेलगपुराओ नयराओ सुभूमिभागाओ पडिनिक्खड़, पडिनिक्खमित्ता नहिया जणवयविहार विरह, ) इस के बाद किसी एक समय वे शुरू अनगार शैलक पुर नगर से और उस सुभूमिभाग नाम के उद्यान से निकले और निकल कर उन्हों ने वहा से बाहर जनपदों की ओर विहार कर दिया । (तएण से सुए अणगारे अन्नया कपाइ तेणं अणगारसहस्सेणं सद्धि सपडिबुडे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामोणु गाम विहरमाणे जेणेव पोंडरीए पव्वए जाव सिद्धे ) ग्रामानुग्राम विहार करते २ वे किसी एक समय उस अपने शिष्य अनगार सहस्र के साथ तीर्थकर, गणधर परपरा के अनुसार चारित्र की आराधना करते हुए जहा पुडरीक नाम का प्रसिद्ध पर्वत था वहां आये वहां आकर उन्हों ने वहां के पृथिवी शीला पट्टक की प्रतिलेखना की प्रतिलेखना कर के फिर उन्हों ने उस
शारीने शिष्य ३ये साध्या (तएण से सुए अन्नया कयाइ सेलगपुराओ नयराओ सुभूमिभागाओ..पढिनिक्सम पडिनिक्स मित्ता बहिया जणवयविहार विहारइ ) ત્યાર ખાદ કોઈ એક વખતે શુક અનગર શૈલકપુરના સભૂમિભાગ ઉદ્યાનથી हार नीडीने त्याथी मारना मील नहोभा विहार ये ( तएण से सुए अणगारे अन्नया कयाइ तेण अणगारसहरसेण सद्वि सपडिवुडे पुन्नाणुपुव्वि चरमाणे गामाणु'म विहरमाणे जेणेव पोंडरीए पव्वए जाव सिद्वे ) शु परि ત્રાજક એક ગામની બીજે ગામ વિહાર કરતા કરતા કાઈ વખતે પોતાના એક હજાર અનગાર શિષ્યેાની સાથે તીર્થંકર, ગણાધીની પર પગને અનુ સરત ચારિત્રની આરાધના કરતા કરતા જવા પુડરીક નામે પ્રસિદ્ધ પર્વત હતા ત્યા ગયા પહેાચીને તેમણે ત્યા પૃથિવી શિલાપટ્ટકની પ્રતિલેખન કર્યાં પછી તેમણે તેના ઉપર પાતાના એક હજાર શિષ્યેની સાથે પાદપેાગમન