________________
anarasures
कधर्मविषयक श्रद्वान तदपनीय पुनरपित शोचमूल के धर्मे स्थापयितु ममोचितमित्यर्थः । ' तिरुड ' इतिकृत्वा = इद मनसि धृत्या, एवम् उक्तप्रकारेण ' सपेहेर ' प्रेक्षते विचारयति, 'सपेहित्ता' सप्रेक्ष्य इत्येव मनसि विचार्य, परिप्राजकसहस्रेण सायनैव सौगधिकानगरी यौन परिमाज कावसथः = परित्राजकानामावसथ आश्रम तत्रैवोपागन् उति, उपागत्य परिवाजका मये भाण्डनिक्षेपम् त्रिदण्डाद्युपकरणान स्थापन करोति, कृत्वा धातुरक्तवस्त्र परिहितः गैरिकरागरञ्जित नगरी प्रविरलपरिवाजकैः कतिपयपरिनजिकाश्रमात् ' पडिनिक्खमइ' प्रतिनिष्क्रामति = निः सरति । प्रतिनिष्क्रम्य निःसृत्य सौगन्धिकाया नगर्या 'मज्झ मज्झेण' मध्यमध्येन मध्यमध्यभागेन यत्र सुदर्शनस्य गृह, यनैव सुदर्शनस्तत्रैवोपागच्छति ।
,
८
यही योग्य है कि मैं सुदर्शन की विनय मूलक धर्मको दृष्टिको हटाकर उसे समझाकर स्थापित करूँ । (त्तिकहुएव सपेहेइ ऐसा मनमें धारण कर उसने पूर्वोक्तरूप से उसे समझाने का विचार किया - (सपेहिता परिव्वायगसहस्सेण सद्वि जेणेव सोगधिया नगरी जेणेव परिव्वायगा वसहे तेणेव उवागच्छछ) विचारकर वह फिर परिव्राजक सहस्र के साथ जहा वह सौगधिका नगरी और उस मे भी जहां परिवाजकाश्रम था वहा आया । ( उवागच्छित्ता परिव्वायगावसरसि भडनिक्खेव करेइ) आकर उसने उस परिव्राजकाश्रम में अपने भाँडोको रख दिया (करिता धाउरत्तवत्यपरिहिए पविरलपरिव्यायगेहिं सद्धिं सपरिवुडे परिव्यायगव सहीओ पडिनिक्खमई ) रखकर फिर वह गैरिक धातु से रगे हुए वस्त्रों को पहिरे हुए कुछेक परिवाजको के साथ २ उस परिव्राजकाश्रम से बाहर निकला ( पडिनिक्खमित्ता सोगधियाए
डीने ईरी शीय भूस४ धर्म प्रत्ये तेनी श्रद्धा भावची लेहो ( त्ति कट्टु ए सपेद्देइ ) मा रीते मनमा विचार उरीने तेथे पडेसानी प्रेम तेने समन्ववाना विचार यो (सपेहित्ता परिव्वायगसहरसेण सद्धिं जेणेत्र सोगधिया नयरी जेणेव परिवायगाव हे वेणेव उवागच्छ्छ ) विचार हरीने ते इरी सहस પરિનાજકાની સાથે જ્યા તે સૌગયિકા નગરી અને તેમા પણુ જ્યા પિતાજ अश्रम हतो त्या सान्या ( उत्रागच्छित्ता परिव्यायगावसह सि भडनिक्खे / करेइ ) भाचीने तेते पोतानी अधी वस्तुओ त्या भूडी ( करिता धाउरत नत्थपरिहिए पविरल परिव्वायगेहिं सद्धिं सरवुिडे परिव्नायगावसहाओ पडिनिक्खमई ) भूडीने તે નૈરિકધાતુથી રંગાએલા વસ્ત્રો પહેરીને થાડા પરિવ્રાજકાને સાથે લઈને आश्रभनी आर नीउज्यो ( पडिनिक्स मिठा सोगधियाए नयरीए मज्झ मज्झेण