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________________ ७५२ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे लानाच 'ओसहभेमज्जभत्तपाणेण ' औषध भैषज्यमक्तपानेन = औषधमेवद्रव्य साध्य, भेषज = भने द्रव्यसयोगनिष्पन्न भक्तपानम् - आहारः, पानम् = पानीय, तेन, 'पड़ियारकम्मं ' प्रतिचारकर्म= सेवारून कर्म कुर्वन्तो विहरन्ति । ततस्तदनन्तरं खलु नन्दः नन्दनामामणिकार श्रेष्ठी, ' उत्तरिल्ले ' उत्तरीये वनपण्डे एका महतों ' अल्कारिवसम ' अलकारिकसमा = नापितकर्मशाला वार यति, कीदृशीम् ? अनेकस्तम्भणतसनिविष्टा यावत् प्रतिरूपाम्, तत्र तस्या नापितरशाला बहरोऽलङ्कारिक पुरुषाः =नापिताः, दत्तभृतिभक्तवेतनाः बहूनां द्रव्य साम्य दवाका नाम औषव है और जो अनेक दवाओंके मयोगसे दवाई तैयार की जाती है वह भैषज्य है (तरण णदे उत्तरिल्ले वणसढे एग मह अलकारियसभ करावेह अणेगख ममयस निविट्ठ जान पडिरूष, तत्थ बहवे अलमारियपुरिसा दिनभइभत्तवेयणा चट्टण समणाण य माहनाग य अगााण य गिलाणाण य रोगियाण य दुब्लाग य अलकारिय कम्म करेमाणार विहरति तएण तीए नदाए पोस्त्रकिणीए बहवे सणाहा य अणाहा य पथिया य पहियाय करोडिया य कप्पडिया य तणहारा य पत्तहारा य कट्ठहाराय अप्पेगइया व्हायति, अप्पेगइया पाणिय पियति, अप्पेगइना पाणिय सवति अप्पेगइया विसज्जिय से य जल्लमल परिस्समनिद्द खुष्पिवासा सुह सुहेण विहरति ) इस के बाद उस मणिकार श्रेष्टी नद ने उत्तर दिशा सचन्वी वनपड मे एक बडी भारी नापित कर्मशाला बनवाई। यह भी सैकड़ों खभो से निर्मित्त की गई શબ્દથી ગૃહીત થયેલા છે. એક દ્રવ્ય–સાધ્ય દેવાનુ નામ ઔષધ ' છે અને જે અનેક (ઘણી) દાના મિશ્રણથી તૈયાર કરવામા આવે છે તે ભૈષજ્ય છે ( तएण गंदे उत्तरिल्ले वणसडे एग मह अल कारिसभ करावेइ अणेगसभसय सनिविट्ठ जाव पडिव, तत्यण बहवे अलकारियपुरिसा दिन्न भइभत्तवेयणा वहूण समणाण य, माद्दणाण य, अणाहाण य, गिठाणाण य, रोगियाण य, दुब्बलाण य, अलकारियकम्म करेमाणा २ विहरति तएण तीए नदाए पोक्सरिणीए बहत्रे साहाय अणाहा य पथिया य, वहिया य करोडीया य कप्पडिया य तण हारा य, पत्तद्दारा य कट्ठद्वारा य अप्पेगइया व्हायति, अप्पेगइया पाणिय पियति अप्पे | पाणिय सवहति अप्पेगइया विसज्जिय से य जलमल परिसमनिद्द सुप्पिवासा सुह सुद्देण विहरति ) त्यारपछी ते भजिअर श्रेष्ठी न हे उत्तर दिशाना વનપડમા એક વિશાળ નાપિત કશાળા ( જામ શાળા) બનાવડાવી તે જોવામાં તે ખૂબ જ પશુસેક થાલવાએ ઉપર ખાધવામા આવી હતી
SR No.009329
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages1120
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size34 MB
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