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गारधर्मामृतवर्षिणी टो० अ० १३ नन्दमणिकार भववर्णनम्
चाउकोणासमतीरा अणुपुव्वसुजायवप्पगभीरसीयलजला संछपणपत्तविसमुणाला वहुप्पलपउम कुमुयनलिणसुभगसो गंधियपुरिय महापुडरीय सयपत्तसहस्सपत्तपफुलके सरोववेया परिहत्थभमतमत्तछप्पय अणेगसउणगणमिहुणवियरियस दुन्नइयमहुरसरनाइया पासाईया || सू० २ ॥
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टीका -' इम चण' इत्यादि । स ददुरको देवः हम च खलु ' केवलकप्प ' केवलकल्प - सम्पूर्ण जम्बूद्वीप द्वीप विपुलेन 'ओहिणा' अधिना -- अवधिज्ञानेन आभोएमाणे २ ' आभोगयन आभोगयन् = वारवारमव लोकयन् ' जाव ' ' नट्टविहि उवदभित्ता पडिगए ' यानन्नाट्यविधिमुपद प्रतिगत. 'जहा सुरियामे' यथा सूर्याभ, सूर्याभदेववत् । तद् गमना नन्तर भदन्त । इति सोध्य भगवान् गौतमः श्रमण भगवन्त महावीर बन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यत्वा एवमवदत् - अहो ! खलु भदन्त ? दर्बुरो
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'इम च ण केवलकप्प ' इत्यादि ।
टीकार्य - वह दर्दुरकदेव (इम च ण केवलकप्प जब्दीव २) इस केवल कल्प - सपूर्ण - जबूद्वीप नाम के द्वीप को (बिउलेणं ओहिणा ) अपने विपुल अवधिज्ञान से ( आभोए माणे २) वार २ देखता हुआ ( जाव
विहिं वदसित्ता पडिगए) यावत् नाट्य विधि को दिखला कर चला गया ( जहा सूरिया मे ) सूर्याभदेव की तरह ( भतेति भगव गोयमे समण भगव महावीर वदइ णमसइ, वदित्ता णमसित्ता एव बयासी ) उस के चले जाने के बाद हे भदत ! इस प्रकार से सबोधित करके भगवति गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर प्रभु से इस प्रकार पूछा (अहो पण भते ! ददुरे देवे महड्डिए महज्जुहए महानछे, महाजसे
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इम चण केवलकप्प ' इत्यादि
२४ देव ( इम च ण केवलकप्प जबूद्दीव २ ) आा जेवल उपस पूर्ण - यूद्वीप नामना दीपने ( बिउलेण ओहिणा ) पोताना अवधिज्ञानथी ( आमोपमाण ) વાર વાર જોત जाव नट्ठविहिं उवदसित्ता पडिगए) यावत् नाटय विधिनु प्रदर्शन जतावीने तो रह्यो ( जहा सूरियाभे ) सूर्याल हेवनी प्रेम (भतेति भगव गोधमे समण भगव महावीर व दइ, णमसइ, व दित्ता णमसिता एय वयासी ) तेना वा पछी श्रमण लगवान महावीर अनुना ચરણુામા ભગવાન ગૌતમે ‘હે ભદત !' એવી રીતે સાધીને તેએએ પ્રભુને
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