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________________ ३२ हानाधर्मकथाजमने अग्रिमचरण भ्यां स्पृशतः ‘फदेति' स्पयतः ईषञ्चलितं कुरुनः, 'खोभे ति' क्षोभयतः संचारं कारयितुं भयजनचेष्टां कुरुतः, इममेवोर्थ स्पष्टी कुर्वनाह-'पहेहिं पालुपति, दंतेहि य अक्खोडेंति' नखैरालुम्पतः नखाधातः, कृन्तनः, दन्तैश्चाऽऽस्फोटयतः दन्ताघातैश्च विदारयतः। किंतु नो चै खलु 'संचाएंति' शक्नुतः तयोः कर्मकोः शरीरयोः 'आवाह' आवाधाम् ईषन् पीडां, वा 'पवाह' प्रकृष्टपीडां बा, 'वाबाई' व्यावाधां विशिष्टपीडां वा 'उप्पाएनए' उत्पादयितुं 'छविच्छेयं' छविच्छेदं चर्मच्छेदम्, आकृतिविकृति वा 'करेत्तए' कर्तुम् । यद्यपि तो शृगालो नखदन्तायातः कर्मकद्वयं पीडयितुं प्रवृत्तौ तथापि कापिक्षतिस्तयो भूदिति संक्षिप्तार्थः ॥ म. ७ ॥ घरणो से उन्हें छूना । (फ देंति) बाद में उन्हे कुछ २ आगे सरकाया(खोमें ति) उन्हे चलाने के लिये उन्होंने वहां भय जनक चेष्टा भी की (गहेदि आलुपंति दंतेहिं अक्खोडे ति नो चेव ण संचाएंति)-नखों से उन्हें विदारा भी दांतों से उन्हें काटा भी,परन्तु वे समर्थ नहीं हो सके(तेसिं कुम्मगाणं सरीस्प आवाहं वा पवाहं वा वावाह वो उपाएत्तए छविच्छेयं वा करेत्तए) उन कूमों के शरीर में थोड़ी सी भी पीडा पहुँचाने के लिये प्रबल पीडा पहुँचाने के लिये विशिष्ट पीडा पहुंचाने के लिये । और न उनके छविच्छेद-चर्मच्छेद--करने के लिये--आकृति को विकृत बनाने के लिये ममर्थ हो सके । तात्पर्य यपी वेदों श्रालि नव और दानों से उन दोनों कच्छपों के उपर प्रहार करने में जुट गये तो भी वे उनका कुछ भी विगाड नहीं कर सके ॥ मु ७ ॥ ध्या (फदें ति) त्यार पछी तेमने थोडा मागण मसेड्या (खोभेति) तभने यसायका भाटे तमामे स्योत्पा६४ येष्टामा पY ४ (ण हेहिं आलु पंति दंतेहिं अक्खो डेति नो चेव ण संचाएंति) नमाथी ५वा भाटेनी तेभन हताथी अभी नाममानी आशिश ५ तेमा व्यर्थ सागित ४ (तेसिं कुम्मगाण सरीरस्स आयाह वा पवाहं वा वाबाई वा उप्पाएनए छविच्छेय वा करेत्तए) ते rlએના શરીરને સહેજ કષ્ટ આપવામાં વધારે કષ્ટ આપવામાં, તેમના ચમભાગને કાકામાં અને આકૃતિને વિકૃત બનાવવામાં અને કાલે શક્તિમાન થઈ શકયા નહીં કહેવાનો હેતુ એ છે કે બંને ગાલેએ પિતાના નખ અને દાતેના ભયંકર પ્રહાર કર્યા છતાં એ બને કાચબાઓને સહેજ પણ ઇજા પહોંચાડવામાં સમર્થ થઈ શક્યા નહી. એ સૂત્ર છ
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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