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अनगारधममृतवर्षिणीटीका अ ३. जिनदत्त - सागरदत्तचरि
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स्थाने स्वगृहे एवं अ ( नेन प्रकारेण ) 'दो कीलावणगा' द्वौ क्रीडनकौ-क्रीडा कारकौ द्वौ मयूरपतको मयूरीशावको भविष्यत इति कृत्वा - इति विचार्य, अन्योऽन्यस्यैतमर्थं प्रतिश्रृणुतः मनसि घोर पतः प्रतिश्रुत्य 'सएसए' स्वकान् स्वकान् दासचेटकान् शब्दयतः शब्दयित्वा चैवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादिष्टाम 'हे देवानुमियाः गच्छत खलु यूयं इमे -- एते अण्ड के मयू Crush गृहीत्वा स्वकानां जातिमतीनां कुक्कुटीनामण्डकेषु प्रक्षिपत, इति वचनं श्रुत्वा या दासा अपि तथैवाण्डके प्रक्षिपन्ति ॥ १२ ॥ वाली हम दोनों की कुक्कुटिकाएं इन हम लोगों के द्वारा लाये हुए मयूरी के अंडों की अपने २ अंडो की रक्षा तथा उनकी परकृत उपद्रवों से प्रतिपालना करती हुई रक्षा और प्रतिपालना करलेंगी । (तएणं अम्हं एत्थं दो कीलामणगा मऊरपोयगा मविस्संति तिकडु अन्नमन्नस्स एयमहं पडित) इस प्रकार हम लोगों के अपने २ घर पर दो क्रीडा कारक मयुरी पोत ( बच्चे ) हो जावेंगे ऐसा विचार कर उन दोनोंने आपसमें एक दूसरे का विचार स्वीकार कर लिया ( पडिणिचा सए सए दासचेडए सदावेति ) स्वीकार कर फिर उन्होंने अपने २ नौकरों को बुलाया (सद्दावित्त एवं वयासी) बुलाकर ऐसा कहा - (गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया !) हे देवानुमियो ! तुम लोग जाओ और (इमे अडए गहाय सयागं जाइमताणं कुक्कुडीगं अंडएस पक्खिवह जान ते वि पक्खिवेति ) इन मयूरी के दोनों अंडोको ले जाकर अपनी २ जातीवाली कुक्कुटिकाओं के अंडों में रख दो। इस प्रकार के उनके कथन को सुनकर यावत् उन दासने भी उस तरह उन दोनों अंडो को ले जाकर उन कुक्कुटिकाओं के अंडों में रख दिया ।। सू. १२ ॥
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અહારના ઉપદ્રાથી રક્ષણ કરતી ઢેલના ઈંડાનુ` પણ રક્ષણ કરશે અને પાલન પોષણ કરશે (तरणं अहं एत्थ दो कीलामगगा मउरपोयगा भविस्संति तिकट्टु अन्नमन्नस्स एयमहं पडिसणे ति )खा रीते भाषा अनेनां धरोभां श्रीअभयूरनी मस्याओ थर्ध नशे, आम तेथेो मने थे! मीलना वियारोथी सहभत थया ( प डिसृणित्ता सएसए दासचेडए सहावे ति) सहुमत थाने तेथेोमे पोतपोताना नोटरीने मौसाव्या (सावित्ता एवं वयासी) गोसावीने या प्रभागे उधु (गच्छहणं तुन्भे देवाणुपिया !) डे हेवानुप्रियो । तमे लगो भने (इमे अडए गहाय सयाणं जाडमंताणं कुक्कुडीणं अंडए पक्खिवह जाव ते विपक्खिवें ति) मा देसना ने 5 डाने अभारी મરઘીઓના ઇંડાઓની વચ્ચે મૂકી દો. આ રીતે તેમની વાત સાંભળીંને નેકરે એ અને ઈંડાંને લઈને સા વાહ પુત્રોની મરઘીઓના ઈ ડામ્બેની વચ્ચે મૂકી દીધાં સુ.ત્ર ૧૨