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अनवरधर्म मृतवर्षिणीटीका अ २ १९ धन्यस्य च धविमोचनादिकमन्ध
एवं वृत्त। समाणी हट्टु जात्र आसणाओ अब्भुट्ठे अन्मुद्दित्ता कंठाकंठि अवयास खेमकुसलं पुच्छइ पुच्छित्ता पहाया जाव पायच्छित्तो विउलाई भोग भोगाई झुंजमाणी विहरड़ ॥ सू. ११ ॥ टीका- 'तएण से धणे' इत्यादि- - ततः खलु म धन्यः सार्थवाहः अन्यदा कदाचित् मित्रज्ञातिनिजक स्वजनसम्बन्धिपरिजनेन = मित्रज्ञातिप्रभृतिद्वारा स्वकेन च 'अत्थमारेण' अर्थसारण= बहुमूल्य रत्नादिना बहुमूल्यरत्नादि समर्पणेनेत्यर्थः 'रायकजाओ' राजकार्यात् = राजसङ्कटात् आत्मान= स्वकं 'मोयावे' मोचयति, मोचयित्वा = मुक्तो भूत्वा चोरकशालायाः प्रतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव 'अलंकारियसभा' अलङ्कारिकसभा= नापितशालाऔर कर्मादिशरीरसस्कारस्थानमित्यर्थः, तत्रैवापागच्छति, उपागत्य 'अलंकारि यक्रम्मं' अलङ्कारिककर्म=नखकेशमण्डनादिकर्म 'कारवेद' कारयति, कारयित्वा चैत्र 'पुखरिणी' पुष्करिणी= वर्तुलवावी तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य - अथ
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'तर णं से धणे सत्यवाहे अन्नया कयाई' इत्यादि ॥
टीकार्थ - (तपर्ण) इसके बाद (से धणे सात्थवाहे) उस धन्यमार्थवाहने (अन्नया कया) किसी एक समय ( मित्तनाइनियगसयण संबंधिपरियणेणं)
मित्र, ज्ञाति, निजक स्वजन सबंधी परिजनों द्वारा (स्त्र केन अत्थसारेणं) अपने बहूमूल्य रत्नादि भेट राजा को समर्पण करवा कर (रायकजाओ अध्वाणं मोयावेइ) राज्य संकट से अपने आपको मुक्त करना लिया । (मोयाविना चारगसालाओ पडिणिक्खमइ) जब वह मुक्त घोषित हो चुका - तब कारागार से बाहर निकला (पडिनिक्खमित्ता जेनेत्र अलंकारियमभा तेणेव उवागच्छ) बाहर निकल कर वह जहाँ नापिन की दुकान थी— हां गया -- ( उवागच्छित्ता अलंकारिकम्मं कारवेह)
'तरण' से घण्णे सत्थवादे अन्नया कयाइ" इत्यादि ॥
टीकार्थ - (तएण ) त्यार पछी (से धणे मत्थवाहे ) धन्य सार्थवाहे (अन्नमा कयाइ) मे वणते ( मित्तनाइ नियगसयणस व पिरियणे ) पोताना भित्र, ज्ञाति स्वन, समधी भने पनि द्वारा (स्वकेन अन्थमारेण । મહે भिती रत्नो वगेरै समर्पण उरावीने (रायकज्जाओ अपाण मांयावेइ) रान्त्य संउटभाथी पोतानी लतने छोडावी (मोयावित्ता चारगमालाओ पडिणिक्वमड) न्यारे ते भुक्त थयेबो लहेर वामां याव्या, त्याने ते सभांथी महार निउज्या (पडिनिक्खमित्ता जेणेव अलंकारियसभा तेणेव उवागच्छङ) महार नीजीने ते हलभनी हुअन उपर गयो (उवागच्छित्ता अलंकारिकम्म