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ज्ञाताधम ाइ ५२४ पक्षालनान, 'तीरेः' तीरयनि-पूर्णति तदवी स्वल्पकालावस्थानाद, 'किडे कीर्तयति पारणादिने बूत्रानुसारेण यत् यत् कर्तव्यं तत्ताचे मया कृत'मित्येवं कीर्तनान् एवं उतरीत्या कायेन स्पृष्ट्वा, पालरिया, गोधयित्वा, नीरयित्वा, कीर्तयित्वा पुनरपि प्रमण भगवन्तं महावीर बन्द ते, नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा एवमवदत्-इच्छामि खलु हे मान्न! गुनाभिर यनुनातः बन् चारित्ररूप मोक्षमा के अनुसार, अथवा यापामिक मार के अनुसार 'मासिकी भिक्षुप्रतिमा' इस शब्दरूप तत्व के अर्थ के अनुसार समता भाव के अनुसार के बल अभिलापमात्र से ही नहीं किन्तु काय से आरावन किया, वारंवार उपयोग पूर्वक उसका परिपालन किया संरक्षण कियाअतिचाररूप पङ्क (कीचड) को प्रक्षालन करते हुए उसका संशोधन किया अवधि समाप्त होने पर भी कुछ काल तक बहा और स्थिर रहने से उसके पार को प्राप्त किया उसका कार्नन किया-'पारणा के दिन जो २ कर्तव्य होते हैं वे सब भने किये' इम मकार से उसका वर्णन किया। (मम्म कारणं फामिना, पालिना, सोहिता, नीरिना, किहिता पुणरवि समणं भगवं महावीर वंदर, नमंसद) इस प्रकार 'फामिला' वायसे उसका, स्पर्श कर पालिना उपयोग पूर्वक उगा पालन कर मोहिता अनिचारी का वहां में संशोधन कर 'तीरित्ता' उसके पार को प्राप्त कर और 'विहिता' उसका स्तुति कर पुनः श्रमण भगवान की मेबकुमार मुनिगजने वंदना की नमस्कार किया (वदिना नमंमित्तागवं वयानी-छामिण मते नुम्भेहिं अमणुण्णाए ચારિચય મહામાર્ગ મુજબ અથવા તો શપથમિટ મુજબ “માનિકી ભિક્ષુપ્રતિમા આ શબ્દના અર્થરૂપ તત્ત્વ પ્રાણ ગમતાભાવ મુજબ, ફકત અભિલાષાથી જ નહિ પણ કાયથી આરાધન કર્યું વારવાર ઉપયોગ કરતા તેનું પાલન કર્યું, અક્ષણ કર્યું , અતિચારૂપ પંક (કાદવ) નું પ્રક્ષાલન કતાં તેનું શોધન કર્યું. આ ત્રિની ગાપ્તિ પછી પણ થોડો વધુ વખત ત્યા સ્થિર હ્યા તેથી તેને પાર ન પામી શક્યા, તનુ કીર્તન કર્યું પારણના દિવશે જે જે કર્તવ્ય કર્મ હોય છે, બામ કર્યા છે. આ પ્રમાણે તેનું વર્ણન કર્યું. (मम्मं का काविना. पालिचा, मोहित्ता.नीरित्ता, किहितो पुणरवि समणं भगवं महावीरं चंदर नमनट) प्राचीनन फालित्ता थाने यापूर्व तेनु पाइन शान 'माहिता तियान त्याची साधन न नीरित्ता' तने પર પાની અને દિદિ નુ રન કરીને ફરી મુનિજ મેવકુમારે મણ मन भावान या tax i (बंदिता नममिता पर बयासी