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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका म्यू. ४० मेघमुनेहम्तिभववर्णनम् नियोजकः 'जूहबई' यूथपतिः स्तिममूहनायकः 'विंदपरिवड्डए' वृन्दपरिवर्धकः= निजपरिवारवृद्धिकारकः त्वं हे मेघ ! अन्येषामपि बहूनाम् ‘एकल्लाणं' एकाफिनाम् 'एकविहारिणां 'हत्थिफलभाणं' हस्तिकल मानां हस्तिशापकानां च 'आहेबच्च' आधिपत्यं स्वामित्वं यावत् कुर्वन् पोलयन् विहरसिस्म । ततःखलु हे मेघ ! त्वं 'निच्चप्पमते नित्यप्रमत्ता विषयादिषु नित्यप्रमादीसन् 'सइंपललिए' सदा मललितः प्रक्रीडितः क्रीडारसिकः 'कंदप्परई' कंदर्परतिः कामक्रीडापरायणः मोह णसीले' मोहनशील विषयासक्तः 'अवितिण्हे' अवितृष्णा: कामभोगेषु अविरक्तः 'कामभोगतिसिए' काममोगाषितः, कामभोगाः-पंचेन्द्रिय विषया. स्तत्र प्रसक्तः बहीभिर्हस्तिनीभिर्यावत्संपरिवृतः वैताढयगिरिपोदनले वैताढयकिया करते थे। कारण (यूथपति ) तुम हस्ति समूह के नायक कहे जाते थे। (विंदपरिवढए) वहां तुम अपने परिवार की वृद्धि करने में लगे रहते थे। (अन्नेसिं च वहणं एकल्लाणं हथिकलभाणं आहेवच्चं जाव विहरसि) समय २ पर अन्य और भी अनेक एकलविहारी इम्तिशावकों का तुम आधिपत्य आदि करते रहते थे। (एसणं तुम मेहा : णिचप्पमत्ते) इस के बाद हे मेघ ! तुम विषयादिकों में नित्य मदोन्मत्त होते हुए (सइपललिए) क्रीडा करने में बडे रसिक बन गये (कंदप्परई) और काम क्रीडा में परायण होकर (मोहणसीले ) विषयों में तुम्हारी अधिक आसक्ति हो गई थी (अवनण्हे ) यहांतक वह आसक्ति बढी कि कामभोग तृष्णा तुम्हारी कभी शांत ही नहीं होती रही (काम भोगतिसिए ) अतः तुम कामभोगों में तृषित होकर (वहूहि हत्थीहि (पावए) घg! अभामा तभने नियुत ४२ता उता, भ3 (यूथपति ) तभने हाथीमाना टोचाना नाय उपाभा भावता ता. (विंदपरिवए) त्यां तमे पोताना परिवारनी वृद्धि ४२वाभा परोवा-मेसा रडता ता. ( अन्नेसिंच बहू णं एकल्लाणं हत्थिकलभाणं आहेवञ्चं जाव विहरसि) मतो quallon पy ! मेसा विय ४२ना। हाथीनां मस्यामा ५२ शासन वगेरे ४२ता २उता हता. (तहणं तुम मेहा णिचप्पमत्ते) त्या२ मा भे। तमे विषय कोरे अमलागामा हमेशा महमत्त यधने (सहयललिए) श्री. ४२वामा भू०४ २सि थ गया. (कदप्परई ) २ति म श थने (मोहणसिले ) विषयोमा तमारे पधारे पती -1 (भाई) 5 ५डी. (अवतण्हे ) मा विषयामा मासहित तमारी माटी हे पाडांची थी तभारी भत! B हवस शांत न थ६. (काम भोगतिसिए) मेटसा भाट तमे विषय सोगानी तीन छ। धरावता दुषित त२२या थने (वहहिं हत्थीहिय जाव संपरिबुडे वेयगिरिपायमूले )