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शानाधर्मकथाइ मन्त्रे लाई चूडामणि रय णुकड मउड पिणति, पिणद्धित्ता दिव्य सुमणदाम पिणदति, पिणहिता दरमलयसुगधिए गंधे पिणद्वंति। तएणं तं मेहं कुमारं गंठिमवेढिमपुरिमसंघाइमण चउविहेणं महेणं कप्परु खगंपिव अलकिय विभूसियं करेंति ॥सू० ३३॥
टीका-'तएणं से' इत्यादि । ततःखलु स 'कासव' काश्यपकानापितः श्रेणिकेन राज्ञा एवमुक्तः सन् 'हट्ट जाव हियए' हृष्टो यावत् हृदयः, 'पडिसुणे:' प्रतिश्रृगोति-'तथाऽस्तु' इति कृत्वाज्ञा स्त्रीकरोति, प्रतिश्रुत्य स्वी कृत्य सुरभिणा गन्धोदकेन हस्तपादौ प्रक्षालयति, प्रक्षाल्य शुद्धवस्त्रेण 'मुह' मुखं 'बंधइ' बध्नाति, वध्ठा परेण प्रकृष्टेन 'जत्तेणं' यत्नेन मेघकुमारस्य चतुर
'नएणं से कासवए' इत्यादि।
टीकार्थ--(तएणं से कासवए सेणिएणं रन्ना एवं वृत्ते समाणे ठे जाव हियए जाव पडिसुणेइ ) श्रेणिक राजाने जब नापित से ऐसा कहा तो वह बहुत अधिक हर्षित हुआ तथा संतुष्ट हुआ-और बोला-महाराज ! जैसी आपकी आज्ञा है मैं उसी के अनुसार कार्य करूँगा इस प्रकार (पडि सुणित्ता) राजा की आज्ञा स्वीकार कर उसने (सुरभिणा गधोदएण इत्यपाए पखालेइ) सुरभी गंधोदक से अपने दोनो हाथ पैरों को धो लिया (पक्ग्वालित्ता सुद्धवत्थेणं मुहं बधइ बधित्ता परेण जत्तेणं मेहरस कुमा रम्स चउरगुलबज्जे निक्खमणपाउग्गे अम्गकेसे पेड) धोकर फिर उसने शुद्ध वस्त्र से अपने मुग्वको बांधलिया। बान्धने के बाद फिर उसने मेघकुमार के चार अंगुल प्रमाण केशों को छोड़कर बाकी के मब 'त एण से कासवए' इत्यादि
tथ-तक्षणं से कासवए सेणिएणं रन्ना एवं वृत्त समाणे हळू जाय हियए जाव पडिसुणेड ) श्रेणि ये न्यारे भने मा प्रमाणे युत्यारे તે બહુ જ હર્ષિત તેમ જ સંતુષ્ટ થયે, અને તેણે કહ્યું–મહારાજ ! જેવી આપની 24 तभारी भाशा भुम आम ४NA मा प्रभारी ( पडिसुणिता ) आननी माज्ञा स्वाशन तेरी ( सुरभिणा गयोदएणं हत्थपाए पकावालेइ ) सुवासित पाथी पाताना मन्ने हाथ ५ घाई दी. (पचालित्ता मुद्रवन्थएणं मुहं बंधइ बंधित्ता परेण जरोणं मंहस्स कुमारम्स चउरगुलज्जे निक्खमणपाउग्गे अम्गकेसे पेड) घाने ते शुद्ध १७ 43 पातानु મો બાંધ્યું બાધ્યા પછી હજામે મેઘકુમારના ચાર આગળ પ્રમાણુ જેટલા વાળ રહેવા