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शाताधर्म कथानमन्त्र कथयत ! तनः ग्यालय श्रेणिको राजा काश्यपक-नापिनम् एवमवदत् गच्छ खलु स्वं हे देवानुमित्र ! 'मुरभिणा गंधोदएण' पुरभिणा गन्धोदकेन शिक्केहत्यपाए पक्वालेह' सम्यक् हस्तपादान प्रक्षालय 'णिक्के' इति सम्यगर्थ वाचको दशीयः शब्दः, मेयाए चउकालाए पौत्तीए' श्वेतया चतुप्पुटया पोनिकया-मुग्ववस्त्रिया, 'मुह वंचित्ता' मुग्न बध्या मेघकुमारम्य 'चउरंगुलबजे' चतुग्गुलबर्जात् चत्वारि अगुलानि प्रमाणं येषां ते तथा-चतुरगलप्रमाणाः दीप्तेि वय॑न्ते इति तुरं गुलबर्जाः, नान 'णिक्खमणपोरग्गे' निष्क्रमणप्रायोग्यान, तत्र निष्क्रमणं द्रव्यभाव संगात निष्क्रान्तिरूपा प्रव्रज्या तम्य 'पाउग्गे' प्रायोग्यान् 'अग्गकेसे' अग्रकेगान चतुरगुलप्रमाणतोऽधिक सद्धिनान् अग्रभूतान केगान 'कप्पेहि कर्तयारकर्म कुरु इत्यर्थः ॥ ३२॥ ज मए करणिज्ज) हे देवानुप्रिय ! आज्ञा दीजिये-जा मेरे लायक-करने योग्य कार्य हो उमकी । (तएण से सेणिए गया कोसवयं एवं वयासो) नापित की ऐसो वान बुनकर श्रेणिक रोजाने उससे ऐसा कहा-(गच्छाहिणं तुम देवाणुप्पिया) है दवानुप्रिय ! तुम जाओं और (सुरभिणा गंधोदएणं णिक्के इत्यपाए पकाखालेह ) पहिले मुरभित गंधोदक से अपने हाथ पैरोको अच्छी तरह साफ करो (सेयाए चउप्फालग पोत्तीए मुहं चंवेना मेस्स कुमारस्स चउरगुलवज्जे णित्रमण पाउग्गे अग्गकेसे कप्पेह) बाद में श्वेत चार पुटवाली मुंहपत्ती से अपना मुंह बांधकर मेघ कुमार के चार अंगुल छोडकर बालो को दीक्षा के योग्य करदो । अर्थात मेघकुमार के बाल चार अंगुल प्रमाण छोड़कर बाकी के मव बना दो। अर्थात हजामत कर दो । मुत्र ॥ ३२॥ तेरे , ितने मन्नाथ नान नमार या भने ह्य संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जं मए करणिज्ज) देवानुप्रिय | माजा मापी, भारे योग्य शुभ छ ? (तणं से सेणिए गया कासवयं एवं वयासी) नमानी पात सामगीन शि: ये तेने यु 3-(गच्छादिणं तमं देवाणुप्पिया) पप्रिय! तमे लय। मने ( मुरभिणा गधोदएवं णिक्के हत्यपाए पखालेह) पडता सुवासित पाथी हाथ 4 सारी शत २२७ मनावो. (सेयाए चउप्फालए पोत्तीए मुहं वंवत्ता मेहस्स कुमारस्स च उरंगुलबजे णिक्खमणपाउग्गे अग्गके से कप्पेह) ત્યાર બાદ ચાર પડવાળી મુખસિકાથી પિતાનું મેં બાંધીને મેઘકુમારના વાળ ચાર આંગળ છોડીને દીક્ષા એગ્ર બનાવી દો. એટલે કે મેઘકુમારના વાળ ચાર આગળ જેટલા રહેવા દઈને બીજા કાપી નાખે એટલે કે હજામત કરી આપે.સૂત્ર ૩રા