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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ स २८ मातापितृभ्यां मेघमारस्य संगद. ३४७ वणं-मत्रं, खेल:="लेष्मा, जल्लः शरीरमलं, 'जल्ल' इात देशीयःशब्दः । सिङ्घानक = नासिकामलं. वान्तं बसनम् , पित्तंप्रतीतम् , शुक्रबार्य, शोणितं= रक्तम् , तेपां संभवः उत्पत्तिर्येषु ते, तथा: अध्रुपा अस्थिराः, अनियता:, अशा. श्वनाः, शटनपतनविध्वंसनधर्माः, तथा किपाकफलोपमाः-यथा किंपाकवृक्षस्यफलानि भक्षणकालएवमधुराणि, भक्षणानन्तरं तु तत्काल एव मरणप्रदानि भवन्ति, तद्वदिमे कामभोगा भोगकालएव सुखरूपाः परंतु तत्परिणामो दुर्गतिप्रद इति भावः । तथा-पश्चात् पुरतश्च खलु अवश्यं विप्रहाणीयाः परित्याज्या:: अथ कः खलु हे मातापितरौ ! जानाति 'केपुधि गमणाए के पच्छा गमणाए' पित्रोः
(उच्चारपासवणखेलजल्लसिधाणगवंत पित्तक्लोणियसंभवा) इन में उच्चार पेशाब, श्लेष्म-पित्त, जल्ल-शरीर का मैत्र नाक का मैल वमन, पिन, शुक्र और रक्त इनकी ही उत्पत्ति होती है। अतः जब (अधुवा) ये काम भोग अस्थिर (अणिझ्या) अनियत (असासया) अशाश्वत) हैं (सडनपडनविद्धंसणधम्मा किपाकफलोवमा) शटन पटन, एवं विध्वंसन धर्मवाले हैं और किंपाकफल के समान है-जैसे भोगकाल मधुर किपाक फल भक्षण करने के बाद ही पाणोपहारक होता है- उसी तरह भोगते समय रुचिकर प्रतीत होने वाले ये काम भोग भी परिणाम में दुर्गति के ही देने वाले होते हैं। (पच्छा पुरं च णं अवस्स विपनहिणिज्जा) और जो अवश्य ही आगे या पीछे छोडे जायेंगे ऐसे हैं तो (से के णं अग्मयाओ जाणइ के पुदि गमणाए के पच्छा गमणाए?) तो फिर हे माता
भूत्र वेम, पित्त,४८, शरीर मेस, नानो भेद वमन, पित्त, शु मने २४त सभनी उत्पत्ति १४य छ. मेटो त्या मामलागी (अधुवा) अस्थिर (अणिइया) मनियत भने (असासया) - शाश्वत छ. (सडणपड़ण चिद्रं मणधम्मा किपाकफलो'वमा) शटन, पटन, मने विध्वसन धर्मવાળા છે. અને કિપાફળની જેમ છે જેમકે ઉપભેગના સમયે કિકાફળ મધુર સ્વાદવાળું હોય છે, અને એના ઉપગ એટલે કે ભક્ષણ કર્યા પછી મૃત્યુ પમાડનાર છે, તેજ પ્રમાણે ઉપભેગના સમયે રુચિકર લાગતા આ કામગે અને हुति २।२।छ. (पच्छापुरंच णं अवस्सं विप्पजहिणिज्जा) मने पहा भा। गर्भ त्या २ अमलामान त्यास तो ४२॥ ५री त्यारे (से के णं अम्म याओ जाणई के पुच्चि गमणाए के पच्छा गमणाए ? ) हे मातापिता ।