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शाताधर्मकथासूत्रे कृत्यत्वानदपेक्षा रहितो भूत्वा श्रमणस्य भगवतो महाविरस्योन्ति के मुण्डो भूत्वा अगारादनगारितां प्रव्रजिष्यसि । ततः स मेघकुमारो मातापितृभ्या येवमुक्तः सन् मातापितरामेवमवदत्-तथैव खलु हे मातापितरौ ! यथैव खलु यूय मामेवं वदत,-'त्वमसि खलु हे जात ! अस्माकमेकः पुत्रः तं चेव' तदेव 'जाव यावत् निरपेक्षः श्रमणस्य३ यावत् प्रव्रजिष्यसि, अयंभावःअम्माकमेकएवपुत्रः प्राणसमस्त्वमसि, त्वद्विरहं सोटुमसमर्था वयम् तस्माद् मुश्व मानुष्यफान कामभोगान् अस्माकं जीवितावधि, तत:पश्चाद् वृद्धत्वे कुल पगमंन्तानं वर्ष यित्वा कृनकार्यः सन् मुण्डो भूत्वा प्रत्रजिष्यसीति। एवं -(ममणस्म भगवओ महावीरग्स अंतिए मुंढे भवित्ता अगाराओ अण गारियं पचास्ससि) श्रमण भगवान महावीर के पास मुडित होकर गृहम्याम्था से सुनि अवस्था धारण कर लेना । तएण से मेहे कुमारे अम्मा पिऊहिं एवं वुत्ते समाणे अम्मा पियरी एवं वयासी) इस प्रकार माता पिता द्वारा इस प्रकार समझाये गये उस मेघकुमारने उन माता पिता से ऐसा कहा--(जहेव तुम्हे ममं एवं वदह तहेव गं त अम्मयाभो ) आप जैसा मुझ से कहते हैं वह ठीक है कि "तुर्मास ण जाया अम्हं एगे पुने तं चेव जाव निरावयक्खे समणस्स भग वओ महावीरस्म जाव पचडस्ससि) तुम मेरे एक ही पुत्र होप्राग लम हो-हम तुम्हारे विरह को सहन करने के लिये असमर्थ हैं - इसलिये जब तक हम लोग जीवित हैं तक मनुष्यभव सम्बन्धी आम मांगों को तुम आनंद के साथ भोगो-उस के वाद वृद्धावस्था में कुल वा सतान बढाकर जब तुम कृतकार्य हो जाओ तो मुंडित होकर ८ [ये-निश्चित ने- (समणस्स भगवभो महावीरस्स अंतिए मुडे भवित्ता अगाराओ अगगरियं पव्वइस्लसि ) श्रम मावान महावीरनी पासे भुलित यने २५ भटीने मुनि अवस्था पा२९५ ४०ने (त एणं से मेहे कुमारे अम्मा पिम एवं बुो समाणे अम्मा पियरों एवं ग्यासी) माता-पिता ॥२॥ प्रमाणे मानवाला भेघमारे माता-पिताने यु:- (जदेव णं तुम्हे ममं एवं वदह, तहेन तं अम्मथाओ) तभै भनेर । छ। ते 2-3 ( तुम मिणं जाया अम्दं एगे पुने त चेव जाव निरावयखे समणम्स भगवओ महावीरम्स जाव पचाम्ससि) तमे भाश सेना से पुत्र छी, प्रा सम છો, અમે તમારા વિરતે સહન કરવામા તદ્દન અસમર્થ છીએ, એટલે જ્યાસુધી
એ જીવિએ છીએ ત્યા લગી મનુષ્યભવના કામગોને તમે આનંદપૂર્વક ભાગ, ત્યારબાદ ઘડપણમા કુળવંશની વૃદ્ધિ કરીને જ્યારે તમે ગ્રહની સંપૂર્ણ ફરજ