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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका असू.२ मातापितृभ्यां मेघकुमारस्य संवाद ३२७
टीका-'तुमंसि णं' इत्यादि। 'जाया !' हे जात! ६ पुत्र ! त्वमसि खलु अस्माकमेकः पुत्रः, यथा-इष्ट: इच्छापूरकः, कान्तः हृदयालादकः, पियः-विनयशीलत्वात्, मनोज्ञः=मनः प्रसादकः, मनोऽमा मनस्यवस्थितः सकलकुटुम्बहितकरत्वात्, 'धिजे' धैर्यः-धैर्यगुणवान्, अर्शआदित्वादबू, घोरे. ऽपि कष्टे समुपस्थितेसत्यविकृतचित्तः, यता कठिन कार्यसंपादनेऽपि उद्वेगवर्जित इत्यर्थः, 'वेसासिए' वैश्वासिकः कपटरहितत्वात्, ‘सम्मए' संमतःअनुकूलकार्यकरणात, 'बहुमए' बहुमतः सर्वथा मनोनुकूलवर्तित्वात् 'अणुमए' अनुमत:-शत्रोरपि हितकरत्वात्, 'भंडकरंडगसमाणे भाण्ड करण्ड कस
'तुमसि गं जाया' इत्यादि।
टीकार्थ-(जाया) हे पुत्र (तुमंसि णं अम्हे एगे पुत्ते) तुम हमारे एक ही पुत्र हो तुमही (इटे) हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले हो (कंते) तुमही हमारे हृदय को आनन्दित बनाने वाले हो (पिए) हमे संसारिक समस्त विभूतियों की अपेक्षा अधिक प्यारे हो (मणुण्णे) तुमहो हमारे चित्त को प्रसन्न करने वाले हो, (मणामे) सकल कुटुवजनों का हित तुम से होने वाला है इस लिये तुम ही हमारे मन में अवस्थित हो-अपना घर कि ये हो-(धिज्जे) घोर कष्ट आदि के उपस्थित होने पर भी तुम उससे विकृत चित्त नहीं बन सकते हो ऐसी हमें तुम से पूर्ण आशा लगी हुई है अतः तुम धैर्य गुणशाली हो (वेसासिए) तुम पर कपट चित्त रहित होने के कारण हमारा पूर्ण विश्वास है (सम्मए) अनुकूल कार्यकर्ता होने से तुम ही हमें संमत हो, (बहुमए) सर्वथा तुम हमारे मन के माफिक चल रहे हो इसलिये हमें बहुत२ कर संमत हो (अणुमए) 'तुमंसि जाया' इत्यादि
आय-(जाया) पुत्र । (तुमंसीणं अम्हे एगे पुत्ते) तमे सभा। मेना ये पुत्र छ।, तमे २१ (इहे) सभा २छायानी पूति ४२ना२ छ।, (कंते) तक मभास हयने मान ५माउना२ छा. (पिट) तभे १ ममा। भाटे ससारना समय वैभव ४२di Qधु प्रिय छ।. ( मणुण्णे) तमे १ सभा। वित्तने प्रसन्न ४२ना२ छ।, (मणामे ) मामा मुटुमनु म तभाराथी ४ थरी मेरो तमे १ सभा२। मनमा अवस्थित छ।, (धिज्जे) सय४२ ४ष्टनो मते पए तभे સહેજે વિચલિત નહિ થાઓ એવી તમારી પાસેથી અમને આશા છે, તમે ધર્ય शुशुवास छ।. (वेसासिए) तमे निपट छ। मेटो तमा ५२ सपूर्ण विश्वास छ. (सम्मए) अनुण ॥२॥२ ४२॥२ डापाथी तमे ८ मभने समत दाग छ।. (बहुमए) तमे हम सभा२१ मत भा४ पता २ा छौ, तथा सभने तमे प समत छ।, (अणुमए) तमे तमा२। शत्रु पर हित ४२। छौ,
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