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झाताधर्म कथामिन्ने वर्जिता अत एव दुर्वला भोजनादित्यागात्, 'किलंता' क्लान्ता-परमग्लानि संपन्ना, 'ओमंथियवयणनयणकमला' ओमंथियवदननयनकमला, 'ओमंयिय' इति अधः कृतं नीचैःकृतं बदननयनकमलं यया सा, पंडरियमुहा' पाण्डरितमुखा-पीतवर्णवदना, अत एव 'करयलमलियन्ब चंपगमाला णित्तेया' करतलमलिता इव चम्पकम्पमाला निस्तेजाः हस्ततलमर्दितचम्पकपुष्प मालेब तेजो वर्जिता,तस्मात् 'दीणविवण्णवयणा दीनविवर्णवदना, तत्र दीनं दुःखितं, विवर्ण-शोभारहितं मुखं यस्याः सा, तथा-'जहोचियपुप्फगंध. मल्लालंकारहारं अणभिलसमाणी' यथोचितपुष्पगन्धमाल्यालंकारहारं अनभिलपन्नी, तत्र यथोचितं यथायोग्थं राज्ञीधारणयोग्यं यथास्यात्तथा पुष्पाणि मालनी प्रभृतीनां, गन्धं कोष्ठपुटादीनां, माल्यं जान्यादि पुष्पाणां, अलंकार-कटक कुण्डलादिरूपं, हारम् अष्टादशसरिकादिलक्षणं तत्सर्वम् अनभिलन्ती अनि च्छन्नी 'कीडारमणकिरियं च परिहावेमाणी' क्रीडारमणक्रियां च परिहापवह बहुत अधिक दुर्वल हो गई (किलंता) ग्वानेपोने में भी उसे अरुचि आ गई (ोमंथियवयणनयणकमला) मुख और नेत्र उसके नीचे रहने लग गये (पंडरियमुहा) शरीर की कांनि फीकी पड जाने के कारण उसका मुरव पीला पड गया (करयलमलियच चंपगमालाणिनीया) हग्न नल से मर्दित चंपक पुष्प की माला के समान वह तेज रहित हो गइ-(दीण. विश्व यणा) इसीलिये उसके सुखपर दीनता और-शोमा रहितता स्पष्ट प्रतीत होने लग गई । (जहोचियपुप्फगंधमल्लालंकारहारं अभिलस-) उस रानी के धारण करने योग्य मालती आदि पुण्पों में कोठपुट आदि के गंध में जात्यादि पुप्पों की माला में कटककुडल अादि रूप अलकार में तथा १८ अहारह लरवाले हार आदि में कोई रुचि नहीं रहो-(क डा मण किरियं च परिहावेमाणी) मरिखयो के साथ हाम्य विनोद करना आदिरूप
ने ते on भले 5 5. (किलंना) वापीवानी मागतमा पाते अय आतावासाची, (आमंधियायण नयणकाला) तेना भांगने नेत्र नीयां २७वा साया, (पंडरियमुहा) शरीनीतिी थ६ ७, तेथी तेनुं भी पापडी गयु तु. (करयलमलियव्य चंपगमालाणित्तेया) शेणीमा यो गयेसा पाना पानी भाजानी म त य 15. (दीण विवरणवयणा) तथा हैन्य मने शोमा २हितता नेना मे ५२ पट ते माना ता (जहोचियपुप्फगंधमलाल मारहारं अणशिरमाणी) यभेदी बगेरे दो, अष्टपुट वगैरेनी सुवास, त्याहि पानी भाषा કડા' : ૧ વગેરે જેવા ઘરેણુઓ, અઢાર (૧૮) લડીવાળા હાર વગેરે કઈપણ ધારણ या याय 311 तुभा तेनी न २ (कीटारमणकिरीयं च परिहावेमाणि)