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________________ ९६ साताधर्म कथाजसूत्र भद्दासणंसिनिसीयइ, निसीइन्ता आसत्था विसत्था सुहासणवरगया करयलपरिग्गहियं सिरसावतं मत्थए अंजलि का सेणियं रायं एवं वयासी-एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! अज्ज तंसि तारिसगंसि सणिजंसि सालिंगणवहिए जाव नियगवयणमइवयंतं गयं सुमिणे पासिताणं पडिबुद्धा, तं एयस्स णं देवाणुप्पिया! उरालस्स जाव सुमिणस्स के सन्ने कल्लाणे फलवित्तिविसेसे भविस्तइ ॥सू० ७॥ .. टीका-'तएणं सा' इत्यादि । 'तएणं' ततः खलु तदनन्तरं साधारिणो देवी 'अयमेयाख्वं' इममेतड़प-मुखप्रविष्टश्वेतराजरूपम्, 'उरालं' उदारं-प्रधानं, कल्लाणं' कल्याण-मुखकरं, 'सि' शिवम् उपद्रवोपशमकं 'धन्नं' धन्यं प्रशंसनीयं 'मंगल' मागल्यं मङ्गलसूचकं 'सस्मिरीय सश्रीक-सुशोभनं 'महासुमिणं' महास्वप्नं महाफलमचकं स्वप्नं पासित्ताणं' दृष्ट्वा 'पडिबुद्धा' प्रतिवुद्धा जागरिता सती 'हट्ट तुट्टा' हृष्टतुष्टा-हृष्टाहर्पपकर्पप्राप्ता तुष्टा=मनःसन्तोषमापन्ना 'चित्तम णंदिया' चित्तानन्दिता=मनोमुदं प्राप्ता, मकारः प्राकृतत्वात्, 'पीइमणा' प्रीतिमना:-प्रीति:पीणनं तृप्तिरित्यर्थः, मनसि यस्या सा तथोक्ता तृप्तमनस्का, 'परमसोमणस्सिया' तएणं सा धारिणी देवी इत्यादि दीकार्थ-(तएणं) इसके अनन्तर (सा धारिणी देवी) यह धारिणी देवी (अयमेधाख्व) जब इस तरह के (उराल) प्रधान (कल्लाणं) सुखकर(सिव) उपद्रवो का उपशम करने वाला (धन्न) प्रशंसनीय (मंगल) मंगल सूचक तथा (सस्सिरीय) सुशोभन (महास्वप्न को (पासित्ता i) देखकर (पडिबुद्धा) जग गई और (हतुट्टा) जव हर्ष के प्रकर्ष को प्राप्त कर मनस्तोष को धारण करती (चित्तमाणंदिया) चित्त में अतिप्रसन्न हुई। और (पीडमणा) फिर मन में तृप्ति को धारण कर जब वह (परमसोमणस्सिया) आत तएणं सा धारिणीदेवी इत्यादि आर्थ-(तएणं) त्या२ मा (सा धारिणीदेवी) ते धारिणीवी (अयमेवारूयं) न्यारे मा (उरालं) प्रधान (कल्लाणं) सुमर (सिव) उपद्रवाने शांत ४२नार (धन्न) मागुवा योग्य (मंगल) मासने सूयवनार तेमाल (सस्सिरीय) सुशासन (महा. सुमिणं) मा २१ नछने तयत थ 15 अने. (हट तहा) भूम हर्ष युत) मनीने मनस्ताप धारण ४२ती (चित्तमाणंदिया) भनमा अत्यन्त प्रसन्न | मने मनमा तृति भगवती (परम सोमणस्सिया) मतिशय शुल भनाभावी
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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