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________________ शाताधर्मकथाङ्गात्रे न्तरत. प्रशस्त सुविलिवितचित्रकर्माणि-आभ्यन्तरता भासाढस्याभ्यन्तर भागे सर्वत्र प्रशस्तानि-दर्शकजनमनो नेत्रालादकानि सुम्नानाविधस्वव्यापार परत्वेन मुटु विलिखितानि=विशेषरूपेण चित्रितानि चित्रकर्माणि पशुपतिमानवाधाकाराणि यस्मिन् तत्तस्मिन् । 'नाणाविहपंचवण्णमणिरयणकोट्टिमतले' नाना विधपञ्चवर्णमणिरत्नकुट्टिमतले-नानाविधानि अनेकपकाराणि पञ्चवर्णानि% कृष्णनीलपीतरक्तश्वेतरूपाणि मणिरत्नानि, मणयः चन्द्रकान्तमयकान्तादयः, रत्नानि इन्द्रनील-मरकत-वज्र-वैडूर्यादीनि, तेपां, कुटनं कुट्टः, तेन निर्वृत्तं कुहिम तलम् अङ्गणं यस्य तस्मिन्-नानामणि-विविधरत्नखचितभूमितले त्यर्थः । 'पउमलया फुल्लबल्ली वर पुप्फजाइ उल्लोयचित्तियतले' पद्मलता पुष्पवल्ली वरपुप्प जात्युल्लोचित्रिततले-पद्मलता: पद्माकारा लताः, पुष्पबल्लय:=पुष्पप्रधाना लताः, बराः श्रष्टाः, पुष्पजाता या मालती प्रभूतयो लताः, ताभिः तदाकाररित्यथैः, चित्रितम् आलेखितम् उल्लोचतल-वितानतलं 'चंदरवा' इति भाषाप्रसिद्धम् यस्य तत्तस्मिन्, गजदन्तादित्वात् परनिपातः । 'बंदणबरकणगकलस चमकीला बना हुआ है (अभितरो पसत्यमुविलिहियचित्तकम्मे) इस के भीतर भाग में सर्वत्र दर्शकजनों के मन ओर नेत्रों को अलादकारक चित्र पशु पक्षि तथा मनुष्य आदि के आकार बने हुए है (नाणाविह पंचवण्णमणिरयणकोहिमतले) इस शयनागार की जो अंगण भूमि है वह अनेक प्रकार के कृष्ण, नील, पीत, रक्त तथा श्वेत रूप पंचवर्ण चाले चन्द्रकान्त मर्यकान्त आदि मणियों की एवं इन्द्रनील मरकत, वज्र वैडूर्य आदि रत्नों की बनी हुई है। (पउमलयाफुल्लबल्लीवरपुप्फनाइउल्लोयचिनियतले) इसमें जो चंदरवी तना हुआ है वह पद्माकार लताओं से पुष्प प्रधानवल्लरियो से (लताओं से) एवं उत्तम२ मालती आदि का वेलों से चित्रित हो रहा है। (वंदणवरकणगकलसस्मुविणिम्मियपडिपुंजिय(अमितरओ पसत्थसविलिहियचित्तकस्म) मा मसभा गधे alना मन અને આખેને ગમે એવા ચિત્ર-પશુપક્ષી તેમજ માણસ વગેરેની આકૃતિઓ બનેલી છે. (नाणाविहपंचवण्णमणिरयणकोहिमतले) मा शयनागा२नु मांY मन3 सतना કૃષ્ણ, નીલ, પિત, રકત તેમજ વેતરંગના ચન્દ્રકાંત સૂર્યકાન્ત વગેરે મણિએ भने छन्द्रनाल, भ२४त वन, बेडूय वगैरे रत्नानु जनयु छ. (पउमलया फुल्लबल्ली वरपुप्फनाइउल्लोयचित्तियतले) मामले तो वो छ, ते કમળના જેવા આકારવાળી લતાઓ, પુષ્પ પ્રધાન વલ્લરીઓ અને ઉત્તમ ચમેલી वगेरेनी सतामाथी यत्रित थ रह्यो छ. (बंदण-वर-कणगकलस-मुविणिम्मिय
SR No.009328
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size48 MB
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