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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०७ पट्त्रिंशत्तममल्पवहुत्वद्वारनि० २४०३ वानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'सम्पत्थोत्रा सुहुमसंपरायसंजमा' सर्वेभ्यः स्तोकाः अल्पाः सूक्ष्मसंपरायसंयता भवन्ति स्वोकत्वात् तत्कालस्य निर्ग्रन्धतुल्यस्वेन च शतपृथक्त्वप्रमाणत्वाद् सूक्ष्मसंपरायसंयतानाम् । परिहारविशुद्धियसंजया संखेनगुणा' सुक्ष्मसंपरायसयतापेक्षया परिहारविशुद्धिकसंयताः संख्येयगुणा अधिका भवन्ति परिधारविशुद्धिककालम सूक्ष्मसंपरायसंयतकालापेक्षया अधिकत्वात् तथा ते परिहारविशुद्धिका लाइव सहस्रपृथक्त्वप्रमाणका भवन्तीति । 'अहक्खायसंजया संखेज्जगुणा' परिहारविशुद्धिका पेक्षया यथाख्यातसंयता संख्येयगुणा अधिक्का भवन्ति कोटिपृथक्त्वप्रमाणत्वात् यथाख्यातानाम् । 'छेदोबट्ठावणियसंजया संखेज्जगुणा' यथाख्यातसंपतापेक्षया हुआ है । तथा च सामायिकसंयत आदि पांच संपतों में कोच संपन किन संयतों से अल्प है ? कौन बहुन है ? कौन बराबर है और कौन विशेषाधिक है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं -गोयमा! खवयोवा मुहमसंप. रायसंजमा०' हे गौतम लब ले कम सूक्षनसंपराधसंपत्त है। क्यों कि सूक्ष्मसंपरावसंयत का काल थोडा है । तथा ये निग्रन्थ के तुल्य होने से एक समय में दो सौ से लेकर ९०० सौ तक हो सकते हैं। परिहारविसुद्धियसंजया संखेज्जगुणा' इनकी अपेक्षा परिहाविशुद्धिक संयत संख्यातगुणे अधिक हैं । इसका कारण स्वासंपरायसंयतों के काल से इन का काल अधिक होता है और ये पुलाकों के जैसा सहस्र पृथक्त्व होते हैं। परिहारविशुद्धिकसंयतों की अपेक्षा 'अहक्खाय संजया संखेज्जणा' यथाख्यातसंयता संख्यातगुणे अधिक हैं । इलका कारण यह है कि इनका परिमाण कोटिपृथक्त्व कहा गया है। 'छेदोवट्ठावणियसंजया संखेज्जगुणा' यथाख्यातसंयत्तों की अपेक्षा छेदोपउत्तरमा सुश्री ई छ है-'गोयमा! सव्वत्थोवा सुहुम परायजया' ગૌતમ ! સૌથી ઓછા સૂક્ષ્મસં૫રાય સંયતા છે. કેમકે સૂમસં૫રાય સંયતને કાળ થડ હોય છે. તથા તેઓ નિર્ચની બરોબર હોવાથી એક સમયમાં मसाथी उन ८०० नवसे सुधी खाध श४ छे. 'परिहारविसुद्वियखजया संखेज्जगुणा' तेना ४२तां परिहा२विशुद्धि सयत सण्यात पधारे छे. તેનું કારણ સૂમસં૫રાય સ યતેના કાળથી વધારે હોય છે. અને તેઓ પુલાકે પ્રમાણે સહસ્ત્ર પ્રથકૃત્વ અથર્ બે હજારથી લઈને નવ હજાર સુધી डाय छे. परिहा२विशुद्धिः स यतानी अपेक्षाथी 'अहक्खायस जया संखेज्जगुणा' યથાખ્યાત સંય સખાતાણા અધિક છે. તેનું કારણ એ છે કે–તેઓનું परिणाम आट पृथ-५ ४९ छ. 'छेदोवद्वावणियम'जया संखेज्जगुणा' यथा