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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०४ पञ्चदश सनिकादिद्वारनिरूपणम् ३२९ संयतोऽधस्तनानां सामायिकसंयतादीनां चतुर्णामपि हीनो नो तुल्यः किन्तु अभ्यधिक एव, यथारूपातसंयतः परस्थानमन्निकण चारित्रपर्यवैः पूर्वेभ्यश्चनुभ्यों नो हीनो नो तुल्यः किन्तु अभ्यधिक एव भवतीति भावः । 'अणंतगुणममहिए' यदि अधिको भवति तदा अनन्त गुणाधिको भवति । 'सहाणे णो हीणे तुल्ले णो भन्महिए' स्वस्थाने तु नो हीनः किन्तु तुल्यो न वा अभ्यधिक इति । 'एएसिणं भंते !' एतेषां खल्ल भदन्त ! 'सामाइयछेदोक्हापणियपरिहारविसुद्धियमुहमसंपरायअहक्खायसंजयाण' सामायिकछेदोषस्थापनीयपरिहारविशुद्धिकसुक्ष्मसंप राययथाख्यातसंयतानाम् 'जहन्नुकोसगाणं चरित्तपज्जवाणं कयरे कयरेहितो जाब विसे साहिया वा' जघन्योत्कृष्टानां चारित्रपर्यवाणां कतरे कतरेभ्यो अम्भहिए' यथाख्यात संयत नीचे के चारों की अपेक्षा हीन नहीं होता है तुल्य भी नहीं होता है किन्तु अधिक होना है। अधिक होने पर भी वह 'अणतगुगमनमहिए' अनन्तगुण अधिक होता है। मतलय इसका यह है कि यथाख्यातसंगत अवशिष्ट चारों के विजातीय चारित्र पर्यायों की अपेक्षा अनन्तगुग अधिक चारित्र पर्यायों वाला होता है। 'सट्टाणे णो हीणे तुल्ले जो अहिए' परन्तु वह यथारपातसंपत स्वस्थान की अपेक्षा अपने लजातीय चारित्रों से हीन नहीं होता है। किन्तु तुल्य होता है, अधिक भी नहीं होता है। ___'एएसिणं संते ! लामाहय छेदोदहावणिय परिहार रितुद्धिय-सुहम संपराय अहवाय संजयाणं जहन्नुक कोसगाणं चारित्तपज्जवाणं कयरे कयरेहितो जाव विसेमाहिना' हे भदन्त ! सामायिक संयत, छेसोपस्थापनीयसंयत, परिहारविशुद्धिक संपल, मक्षमसं रायसंयन, और અપેક્ષાથી હીન હોતા નથી, તુષ પણ હેરતા નથી, પરંતુ અધિક હોય છે. अधिभा पण ते 'अणंतगुणममहिए' तग अधिः हाय छे. रवाना ભાવ એ છે કે-યથાખ્યાત સંયત બાકીના ચારેના વિજાતીય ચારિત્રપર્યાની अपेक्षाथी मनतम पधारे यात्रियायोवा हाय छे. 'सट्टाणे, णा होणे, तुल्ले अव्भहिए' ५२तु ते यथाण्यात सयत २५त्याननी अपेक्षाथी पोताना સજાતીય ચારિત્રોથી હીન હેતા નથી. પરંતુ તુલ્ય હોય છે અધિક પણ હે તા નથી. 'एएसि णं भंते ! सामाइयछेदोवढावणियपरिहारविमुद्धिय-सुहमसंपगय महक्खायसंजयाण जहन्नुफोसगाण चरित्तपज्जवाणं कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया' भगवन् सामाथि सय1, छे ।५स्थानीय संयत, परिहार વિશુદ્ધિક સંયત, સૂક્ષ્મસાપરાય સંયત, અને યથાત સંયત આ બધાના भ० ४२
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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