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________________ ३१८ __ भगवतीसूत्रे अहवायसंगमरस एगे अजहन्नमणुकोपए सजगहाणे' सस्तोकं यथाख्यासयतस्य एकमजघन्यानुत्कृष्ट संयमस्थान सर्वापेक्षया अल्पारं संयमस्थानमेकमेव यथाख्यातसंस्तस्य भतीत्यर्थः । 'सुंदुम्संगरायसंजय अंतोमुहुत्तिया संज महाणा असंखेज्मगुणा' यथाख्यातसयसस्थानापेक्षया मृक्षणसंपरायसंयतस्य आन्तर्मुहतिकानि यारथानानि असंख्यगुणाधिमानि भवन्तीति । 'परिहारविमुद्धियसंजयस्ल संनमाणा असंखेनगुणा वृक्षसंपरायसंयतसंयमस्थानापेक्षया परिहारविशुद्धिकसंयतस्य संयमस्थानानि असंख्येयगुणाधिमानि भवन्तीति । 'सामा इयसंजयस्म छोरारणिय रंजल्स य एएसिणं संजमहाणा दोण्ड वि तुल्ला असंखेज्जगुणा' सामागियत्तय होपस्थापनीयसंयनस्य च एतयोः खलु संयमस्थानानि द्वयोरपि परस्परं तुल्यानि तथा परिहारविशुद्धिकसंगतसंघमरथाना-पेक्षया असंख्ये यगुणाधिकानि भरन्तीति । १०३।।। एगे अजहण्णलणुरकोलए लंजमहाणे' हे गौतम ! सब से कम यथाख्यात संयत का जो एक अजघन्ध अनुत्कृष्ठ संयम स्थान है वह है। क्यों कि यथाख्यातसंगत के एक ही संस्थान होता है। 'सुहमसंप. रायसंजयस्स अंतोनुत्तिया संजना असंखेज्जगुणा' इलझी अपेक्षा स्वक्षमल परायबल के अन्लामुहर्तता रहने वाले संयमरधान असंख्या. 'तगुणित हैं। 'परिहार चिसुद्धियलंजयरल संजमहाणा असंखेनगुणा' सक्षमपरायणत के संबधानों की अपेक्षा परिहारविशुद्धिकसंयत के संयमस्थान असंख्यातगुणे अधिक है। 'सामावलमयरत छे शेवट्ठा. पणिय संजयह एएतिसं जमणा दोषि तुल्ला असंखेज्जयणा' सामायिक संयत्र के और छेदोपस्थापनीय संयत के इन दोनों के संयमस्थान परस्पर में पनाभर है। तथा परिहार विशुद्धिक संपत के संजयस्स एगे अजहण्णमणुकोसए, संजमदाणे' है गौतम सीथी माछु' यथा ખ્યાત સંયતનુ જે એક અજ ઘન્ય અનુકૃષ્ટ સંયમન છે, તે છે, કેમકે• यथायात सयतने मे४०४ सयमस्थान डाय छ 'सुहमसंपरायसंजयस्स अंतो मुहुत्तिया संद्धमट्ठाणा असखेनगुणा' तना ४२ता सूक्षस ५२सय सयतन मतभुइत सुधा २७वा सयमस्थान। समयात छ. 'परिहारविसु द्धियसंज यस्स संजमढाणा अल खेजगुणा' सूक्ष्भस ५२। यसयतन सयभસ્થાન કરતાં પરિહાર વિશુદ્ધિક સંયતના સ યમરથાને અસંખ્યાતગણું વધારે छ. 'सामाइचसजमस्स छेदोबट्टावणियसंजलस्त्र एपनि ण संजमदाणा दोण्ह वि तुल्ला असखेज्जगुणा' सामायि४ सयत गने हायस्थानीय सयत मा બનેના સંયમસ્થાને પરસ્પરમાં બરાબર છે, તથા પરિહારવિશુદ્ધિક સંયતના
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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