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________________ प्रमैयन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू२२ पष्ठं प्रतिसेवनाहारनिरूपणम् २८३ सेवको वा भवेत् तत्र मूलगुणान् प्राणातिपातविरमणादीन् विराधयन् पश्चानामपि आश्रवाणां प्राणातिपातादिनाम् अन्यतयं सेवेत उत्तरगुणान् विराधयन् दशविधस्य प्रत्याख्यानस्यान्यतमं प्रतिसेवेत इति । 'जहा सामाइयलंजए एवं छेदोवठ्ठावणिपवि' यथा सामायिकलंयत एवं छेदोपस्थानीयसंयतोऽपि चारित्रस्यप्रतिसेवको भवेत् अमलिसेवको वा भवेत् यदि प्रतिसेवकस्तदा मूलगुणानां प्रतिसेवक उत्तरगुणानामपि प्रतिसेवको निराधको भवेन् मूलगुणम्-अहिंसादिकं विराधयन् पञ्चानामाश्रवाणामन्यतमं प्रतिसेवेत उत्तरगुणानां विराधको भवन् दशविधमत्याख्यानस्यान्यतमं प्रतिसेवेत विराधयेदिति भावः । 'परिहारविसुद्धिय यिकसंयत प्रतिलेखक होता है ? अथवा अप्रतिसेवक होता है ? यदि वह प्रनिसेवक होता है तो क्या वह मूलगुणों का प्रतिसेवक होता है अथवा उत्तरगुणों का-प्राणातिपातविरमण आदिकों का विराधक होता है तो वह प्राणातिपात आदि पांच आश्रयों में से किसी एक आश्रव का प्रतिसेवक हो जाता है और यदि वह उत्सरगुणों का विराधक होता है तो ऐसी स्थिति में वह दशप्रकार के पत्याख्यान में से किसी एक प्रत्याख्यान का प्रतिरोधक हो जाता है 'जहा सामाइयसंजए एवं छेदोवद्यावणिए वि' सामायिक संयत के जैसे छेदोपस्थापनीयसंयत भी चारित्र का प्रतिषक होता है और अप्रतिसेवक होता है। यदि वह प्रतिसेवक होता है तो वह सूलगुणों का भी प्रतिसेवक होता है और उत्तर गुणों का भी प्रतिलेख-विराधक होता है। मूलगुणों का विराधक होने पर वह पांच आश्रयों से फिती एक आश्रव का सेवक होता है और उत्तरतुणों की विराधना में वह दर्श प्रकार के प्रत्याख्यानों में से किसी एक प्रत्याख्यान का चिराधक होता પ્રતિસેવક હોય છે? કે ઉત્તરગુણોના પ્રતિસેવક હોય છે? જે તે મૂલગુના એટલે કે પ્રાણાતિપાત વિરમણ વિગેરેના વિરાધક હોય છે, તે તે પ્રાણાતિપાત વિગેર પાંચ આ પૈકી કઈ એક અ સ્ટવના સેવનારા હોય છે અને જે તે ઉત્તરગુણેના વિરાધક હોય છે, તો એ સ્થિતિમાં તે દસ પ્રકારના પ્રત્યાખ્યાન પૈકી ५ मे प्रत्यायानना प्रतिसेव होय. 'जहा सामोइयसंजए एव छेदोवदावणिए वि' सामायिसयत ४थन प्रमाणे हो५२थ पनीय सयत यश ચારિત્રને પ્રતિસેવક હોય છે, અને અપ્રતિસેવક પણ હોય છે, જે તે પ્રતિસેવક હોય છે, તે તે મૂલગુણોના પણ પ્રતિસેવક હોય છે, અને ઉત્તર ગુણના પણ પ્રતિસેવક હોય છે. અર્થાત્ વિરાધક હોય છે મૂલગુના વિરાધક થાય ત્યારે તે પાચ આસ્રવ પૈકી કઈ એક આસ્રવના સેવનાર હોય છે. અને ઉત્તરગુણેની વિરાધનામાં તે દસ પ્રકારના પ્રત્યાખ્યાન પૈકી કોઈ પણ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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