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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०१ प्रथम प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् २५९
अथ सप्तमोद्देशकः भारभ्यते । पष्ठोद्देशके संयतानां स्वरूपं कथितम् सप्तमेऽपि तदेव कथ्यते, तदनेन संवन्धेन आयातोऽसौ सप्तमोद्देशका प्रस्तूयते, इहापि प्रज्ञापनादीनि द्वाराणि वक्तव्यानि तत्र प्रज्ञापनाद्वारमधिकृत्योच्यते 'कइ णं भंते ! संजया पन्नत्ता' इत्यादि,
- मूलम्-कइ जे भंते ! संजया पन्नत्ता! गोयमा! पंच संजया पन्नत्ता तं जहा-लामाइयसंजए १, छेदोवटावणियसंजए२, परिहारविसुद्धियसंजए ३, सुहुमसंपरायसंजए४, अहक्खायसंजए५। सामाइयसंजए णं भंते ! कइविहे पन्नते ? गोयमा ! दुविहे एन्नत्ते तं जहा इत्तरिए य जावकहिए य। छेदोवटावणियसंजए णं पुच्छा गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते तं जहा सातियारे य निरतियारे य। परिहारविसुद्धियसंजए पुच्छा गोयमा ! दुविहे पन्नत्ते तं जहा णिविसमाणए य णिविटकाइए य । सुहुमसंपराय पुच्छा गोयना! दुविहे पन्नत्ते तं जहा संकिलिस्समाणए य विसुद्धमाणए य। अहक्खायसंजए पुच्छा गोयमा! दुविहे पन्नत्ते तं जहा छउमत्थे य केवली य ।
सामाइयंमि उ कए, चाउज्जामं अणुत्तरं धनं । तिविहे णं फासयंतो, सामाइथसंजओ स खल्लु ॥१॥ छेत्तुण उ परियागं, पोराणं जो ठवेइ अप्पाणं । धम्ममि पंचजामे छेदोक्टाचणो स खलु ॥२॥ परिहरइ जो विसुद्धं तु पंचजामं अणुत्तरं धम्म। तिविहेण फासयंतो, परिहारिय संजओ य स खलु ॥३॥ लोभाणू वेययंतो, जो खलु उवसानओ व खवओवा। सो सुहुमसंपराओं, अहक्खाया ऊणओ किंचि ॥१॥ उवसंते खीणमि, जो खलु कम्संमि मोहणिज्जंमि । छउमत्थो व जिणो वा, अक्खाओ संजओसखलु ५॥सु.१॥