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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०५ द्वादशं कालद्वारनिरूपणम् भवेत् दुध्यममुपमा झाले वा भवेत् सुषमदुष्पनाकाले वा भवेत् मुपमाकाले वा भवेत् सुषमसुषमाकाले वा भवेदिति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोश्मा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जम्मणं डुच्च णो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा जव पुलाए' जन्म प्रतीत्य नो दुष्षमदुष्पमाकाले भवेत् वकुशः यथैव पुलाकः, पुलाकविषये यथा कथितं सर्व वकु शविषयेऽपि ज्ञातव्यम् तथाहि-दुष्पमाकाले भवेत्दुष्पमसुषमाकाले वा भवेत् सुपमदुष्पमाकाले वा भवेत् नो सुषमाकाले भवेत् न वा सुपमसुषमाकाले भवेदिति । 'संतिभावं पडुच्च णो दुस्समदुस्समाकाले होजा' सद्भावं प्रतीत्य सद्भावापेक्षया इत्यर्थः, नो दुष्षमहुष्पमाकाले भवेत्, 'नो दूसमाहै ? अथवा दुःषमसुषमा काल में होता है ? अथवा सुषम दुषमाकाल में होता है ? अथवा लुषमा काल में होता है ? अथवा सुषमसुषमा काल में होता है ? इस गौतमस्वामी के प्रश्न के समाधान निमित्त प्रभुश्री उनसे कहते हैं-'गोयमा! जम्मणं पडुच्च' हे गौतम ! जन्म की अपेक्षा से तो वह बकुश साधु उत्सपिणी काल के 'नो दुस्समदुस्समा काले होज्जा जहेव पुलाए' दुष्षमदुष्षमा काल में उत्पन्न नहीं होता है इस प्रकार का जैसा कथन पुलाक साधु के विषय में कहा गया है उसी प्रकार का समस्त कथन बकुश के सम्बन्ध में भी कहना चाहिये। तथा च वह धकुश साधु उस्लपिणी काल के दु.षमा आरे में उत्पन्न होता है दुष्षम सुषमाताल में उत्पन्न होता है सुषमदुष्षमकाल में उत्पन्न होता है सुबमाकाल में अथवा सुषमसुषमाकाल में वह उत्पन्न नहीं होता है। 'संलियावं पडुच्च जो दुस्समदस्समा काले होज्जा' सद्भाव की अपेक्षा से वह बकुश साधु दुषमा અથવા સુષમ દુષમા કાળમાં હોય છે? અથવા સુષમા કાળમાં હોય છે ? અથવા સુષમ સુષમા કાળમાં હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ २वामीन ४९ छ -'गोचमा! जम्मणं पडुच्च' 3 गौतम! सन्मनी असे. साथी त म साधु Salqeी जना 'नों दुस्सम दुस्समाकाले होज्जा जहेव पुलाए' षम हुषभ मा त्पन्न थता नथी. म. प्रभागेनु २ પ્રમાણે પુલાક સાધુના સબંધમાં કથન કર્યું છે, એ જ પ્રમાણેનું સઘળું કથન બકુશ સાધુના સ બ ધમાં પણ કહેવું જોઈએ. તથા તે બકુશ સાધુ ઉત્સર્પિણી કાળને દુષમા આર.માં ઉત્પન્ન થાય છે. દુષમ સુષમા કાળમાં ઉત્પન્ન થાય છે. સુષમ દુષમ કાળમાં ઉત્પન્ન થાય છે સુષમા કાળમાં तथा सुषम सुषमा णभा तत्पन्न थता नथी. 'संतिभावं पड़च्च, समापन अपेक्षाथी ते मधुश साधु 'नो दुस्समदुस्समाकाले होज्जा'