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________________ भगवतीयो तदा किमङ्ग पुनः-किमुत वक्तव्यम्-अहम् अन्नपन्निकदेवत्वमपि-अन्नपन्निका व्यन्तरनिकायविशेषास्तत्सम्बन्धिदेवत्वमपि नोपलप्स्ये ? तत्तु अवश्यमेव लप्स्ये, इति कृत्वा विचार्य, ' से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते कालं करेइ, नत्थि तस्स आराहणा' स खलु उपर्युक्तविचारकर्ता भिक्षुः तस्य अकृत्यस्थानस्य अनालोचित-प्रतिक्रान्तः सन् आलोचनप्रतिक्रमणमकृत्वैव कालं करोति चेत् तदा नास्ति तस्य अकृत्यस्थानानालोचितप्रतिक्रान्तस्य भिक्षोराराधना । अथचेत-से णं तस्स ठाणस्स आलोइयपडिकते कालं करेइ, अस्थि तस्स आराहणा' स खलु अकृत्यस्थाननिषेविता भिक्षुः तस्य अकृत्यस्थानस्य आलोचितपतिक्रान्तः आलोचनप्रतिक्रमणं कृत्वा कालं करोति चेत्तदा अस्ति भवत्येव, तस्य भिक्षोराराधना इति भावः । अन्ते गौतमो भगवद्वाक्यं सत्यापयन्नाह-' सेवं एक देवलोक में देव की पर्याय से उत्पन्न हो जाते हैं तो फिर मैं क्या व्यन्तरनिकाय विशेष अन्नपन्निक देवत्व को भी प्राप्त नहीं कर सकूँगाअवश्य ही प्राप्त कर लूगा इसमें तो कोई कहने जैसी बात ही नहीं है ऐसा विचार कर 'से णं तस्स ठाणस्त अणालोइयपडिकंते काल करेइ, नत्थि तस्स आराहणा' यदि वह पापस्थान सेवनकर्ता साधु उस पापस्थान की आलोचना एवं प्रतिक्रमण नहीं करता है और कालधर्मगत हो जाता है तो ऐसे उस साधुको ओराधना नहीं होती है। 'सेणं तस्स ठाणस्न ओलोहयपडिकंते काल करेइ, अस्थि तस्त आराहणा' और यदि वह पापस्थान सेवन कर्ता उस निषेवित पापस्थानकी आलो. चना प्रतिक्रमण कर लेता है बादमें यदि वह काल करता है तो उस आलोचन प्रतिक्रमण का साधु को आराधना होती ही है। अन्त में गौतमस्वामी भगवान् के वचनोंमें सत्यता का प्रतिपादन करने के પર્યાયે ઉત્પન્ન થઈ જાય છે, તે શું હું વ્યન્તરનિકાય વિશેષ અન્નપશ્વિક દેવત્વને પણ શું પ્રાપ્ત નહીં કરું? કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અવશ્ય એ પ્રકારની દેવ पर्याय ताई पास ४0 शीश मा प्ररने विया२ ४शन “से णं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकते काल करेइ, नत्थि तस्स आराहणा" पा५स्थानk સેવન કરનારે સાધુ તે પાપસ્થાનની આલોચના આદિ કર્યા વિના મરણ પામે, तोता द्वारा माराधना थती नथी. “से णं तस्स ठाणस्त आलोइयपडिकंते काल करेइ, अत्थि तस्स आराहणा" ५२न्तु ते साधु पात सेवेसा पा५. સ્થાનની આલોચના, પ્રતિક્રમણ અને પ્રાયશ્ચિત્ત કર્યા બાદ મરણ પામે, તે તેને આરાધક જ કહેવાય છે. હવે મહાવીર પ્રભુનાં વચનને પ્રમાણભૂત ગણીને गौतम स्वामी ४ छ.-"सेव भते ! सेव भते ! ति" " भगवन् ! मापनी
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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