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________________ भगवतीसूत्र माणियवा जाव आराहिया भवई' एवं रीत्या मासिकी मिक्षुपतिमा-निरवशेषा सम्पूर्णा भणितव्या वक्तव्या यावत्-आराधिता भवति, तथा स व्युत्सृप्टे कायेत्यक्ते देहे 'जे के परीसहोरसग्गा उप्पज्नंति-संजहा-दिव्या दा, माणुसा वा, तिरिक्ख जोणिया वा, ते उत्पन्ने सम्मं सहइ, खगइ, तितिरखइ, यहियासेइ' इत्यादि, ये केचित् परीपहोपसर्गा उत्पधन्ते-तद्यथा-दिव्या वा-विविभवा वा मानुपा वा मनुष्यसम्बन्धिनो चा. तिर्यग्यानिका बा, तान उत्पन्नात् सर्वान् परीपदोपसर्गान् सह ते स्थानाऽदिचलनात् , क्षमते क्रोधाभावात् , तितिक्षतेउत्तरमें प्रभु कहते हैं-'एव मासिया भिवखुपडिमा निरवसेसा भाणियव्या जाव आराहिया भव' हे गौतम! इन रीतिले मालिकी भिक्षु प्रतिमा संपूर्णरूप से यहां कहना चाहिये थावत् आराधित होती है यहां तक । तथाच-देहके व्युरमष्ट हो जाने पर और त्यक्त हो जाने पर अर्थात् संस्कारादि परिक्रर्म के परिवर्जनले ममत्परहित एवं बधन्धादिक अवारणसे आसक्ति रहिन देह में हो जाने पर 'जेोइ परीसहो. वसग्गा उप्पजलि-त जलो - दिव्या बा माणुमा बा तिरिकखजोणिया वा ते उप्पन्ने सम्मं सहइ, खमइ, तितिक्खइ, अहियाइ' इत्यादि। उस अनगोर के ऊपर जो कोई भी परीपह और उपसर्ग आते हैं चाहे बे देव कृत हो चाहे मनुष्यकृन हों या तिर्यचकृत हो, उन उत्पन्न हुए सब परीपहों और उपलगों को अपने स्थान बिचलित नहीं होकर जो सहना है, उनके प्रति जिसे आत्मामें निश्चित मात्र भी क्रोध नहीं महावीर प्रभुने। उत्तर-" एव मासिया भिक्खुपडिमा निरवसेसा भाणियषा जाव आराहिया भवइ” गीतम! मडी मिशुपतिमा विनु समस्त ४थन છે તે સંપૂર્ણ રીતે આરાધિત થાય છે,” આ સૂત્ર પાઠ પર્યત ગ્રહણ થવું જોઈએ સ્નાન, વાળની સજાવટ, આદિ ક્રિયાઓને શારીરિક સંસ્કાર કહે છે. આ રીતે શરીર સંસ્કારના પરિત્યાગ પૂર્વક અને વધખધાદિક ન કરવાને કારણે प्रत्येनी भासतिथी २हित नी गया ५छी “जे केइ परीसहोवसग्गा उप्प. ज्जति-तंजहा-दिव्या वा माणुमा वा निरिक्खजोणिया वा ते उप्पन्ने सम्म सहा खमइ, तितिक्ख इ, अहियाम्मे इ" त्याल. - તે અણગાર ઉપર જે કઈ પરીષહ અને ઉપસર્ગો આવે છે–પછી ભલે તે દેવકૃત હય, મનુષ્યકૃત હેય કે તિય ચકૃત હેય-તે બધાં પરીષહ અને ઉપસર્ગોને પિતાને સ્થાનેથી વિચલિત થયા વગર જે સહન કરે છે, તેમના
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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