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________________ प्रमेयचन्किा टीका श० १० उ० २ सू० ३ वेदनास्वरूपनिरूपणम् ५७ पनीतस्य वेद्यस्यानुभवात् विज्ञेया, द्विविधामपिवेदनां पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चो मनुष्याश्च वेदयन्ति, शेपास्तु औपक्रमिकीमेव वेदनां वेदयन्ति । तथा 'दुविहा वेयणानिदाय, ननिदाय' द्विविधापुनर्बेदना-निदाच, अनिदाच तत्र निदा-चित्तवती, अनिदातुभचिसवती वेदना उच्यते, तत्र संज्ञिनो द्विविधामणि वेदनां वेदयन्ति, असंझिनस्तु अनिदामेव अनामोगरूपामेन वेदना वेदयन्ति । प्रज्ञापनायां हारगाथा चेत्थम् __ 'सीयाय दन्त्र, सारीर, साय, तह वेयणा हवइ दुक्खा। भन्घुवर्णमुवम्मिया निदाय, अनिदाय नायव्या ॥१ पाया-शीताच, द्रव्यतः, शारीरी, साता, तथा वेदना भवति दुःखा। अभ्युपगमिकी, औपक्रसिकी, निदाच, अनिदाच ज्ञातव्या ॥१ अथ प्रजापनाया वेदनावक्तव्यताया अबधिमाह-जाव नेपयाणं भंते ! किं दक्वं वेयणं वेयंति, सुहं वेयणं चेयंति, अदुवामहं वेयणं वेयंति ?' गौतमः पृच्छतिदोनों प्रकार की वेदना को पञ्चेन्द्रियतिष और मनुष्य भागते हैं। पाकी के जीच औपकमिशी वेदना को भोगते हैं। 'दुविधा वेषणा निदा य अनिदा तथा निदा और अनिदा के भेदसे भी वेदना दो प्रकार की है। चिप्सक्सी वेदना का नान निदा और अचित्तपती वेदना का नाम अनिदा है। जो जीव संशी होते हैं वे इस दोनों प्रकार की बेदका को भागते हैं। जो असंशो जीव मन विना के जीव है वे अनाभोग रूप अनिदा घेदना को ही भागते हैं। प्रज्ञापना में हार गाथा इस प्रकार से है- 'सीया य व्वसारीर' इत्यादि। वेदना विषयक प्रज्ञापनाका पाठ कहां तक यहाँ पर ग्रहण करना चाहिये तो इसके लिये 'जात्र नेरइयाण भते ! कि दुक्ख वेषण धेयंति, सुहं वेष वेयंति, अदुक्खमलुहं वेयण वेयति' ऐसा पाठ કહે છેઆ બન્ને પ્રકારની વેદનાનો પરચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને મનુષ્ય અનુભવ કરે છેબાકીના છ ઔપહમિકી વેદનાનુ વેદન કરે છે ____दुविहा रेयगा-निदा य, अनिदा य" तथा निह भने मनिहाना था પણ વેદનાના બે પ્રકાર પડે છે ચિત્તવતી વેદનાથે નિહા કહે છે અને અચિત્તવતી વેદનાને અનિદા કહે છે. સંજ્ઞી જ આ બન્ને પ્રકારની વેદના ભોગવે છે, પરન્ત સંસી જીવ (મન વિનાના જી) અનાજોગ અનિદાવેદનાનું જ વેદન ४२ छे. प्रज्ञापनामा दा२॥२मा प्रमाणे छ-"सीया य, व्यसारीर" त्याल. | વેદના વિષયક પ્રજ્ઞા કા સૂત્રને પાઠ ક્યા સુધી ગ્રહણ કરવાનો છે. તે नायना सत्रा द्वारा व्यात यु छ-"जाव नेरझ्याण भते ! किं दुक्खं वेयर्ण देयंति, सुहं वेयणं वेयंति, अदुक्खमसुह वेयण वेयति ?" हे सगवन। नारी भ०८
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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