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________________ ७२४ भगवतीले अवधार्य, हृष्टतुष्टा सती, 'समणं भगवं महावीर वंदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता, एवं घयासी'-श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा, नमस्यित्वा, एवं-वक्ष्यमाणप्रकारेण, अवादीत-'कहं णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्यमागच्छंति ?' हे भदन्त । कुतः-कस्मात्कारणात् खलु जीवाः गुरुकत्वम्-कर्मभारयुक्तत्वम् आगच्छन्ति-प्राप्नुवन्ति ? 'हव्वं' इति वाक्यालङ्कारे भगवानाह-'जयंती! पाणाइ. वाएणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं' हे जयन्ति ! जीवाः प्राणातिपातेन-माणिहिंसया यावत् मिथ्यादर्शनशल्येन-मृपावादमारम्य मिथ्यादर्शनशल्यपर्यन्तेन अष्टादशविधपापेन गुरुकत्वं प्राप्नुवन्ति, तदुपसंहरन्नाह-' एवं खलु जीवा गरुयत्तं हबमागच्छंति, एवं जहा पढमसए जाव वीयीवयंति' एवं पूर्वोक्तरीत्या माणामहावीर के पास धर्म का श्रवण कर और उसका मनन कर हर्षित एवं संतुष्ट होकर के 'समण भगव महावीरं वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नम: सित्ता एवं वयासी' श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना की उन्हें नमस्कार किया वन्दना नमस्कार करके फिर उसने उनसे इस प्रकार पूछा-'कहं णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्यमागच्छति' हे भदन्त ! जीव किस कारण से गुरुत्व (भारीपन) को प्राप्त करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'जयंती! पाणाहवाएण जाव मिच्छादसणसल्लेणं' हे जयंती ! जीव प्राणियों की हिंसा से यावत् मिथ्यादर्शनशल्यसे-मृषावाद से लेकर मिथ्यादर्शनशल्यतक के १८ प्रकार के पाप से-कर्मभार से युक्तनारूप गुरुपने को प्राप्त करते हैं। अब उपसंहार करते हुए सूत्र. कार कहते हैं-'एवं खलु जीवा गरुयत्तं हवमागच्छंति-एवं जहा पढ़मसए जाव वीयीवयंति' इस पूर्वोक्तरीति से जीव प्राणातिपात से शन त श्रावि यता -मने सतोषपूर्व “ समण भगव' महावीर' घदइ, नमसइ, वंदित्ता, नमंसित्ता एवं वयासी" श्रम सगवान महावीरने વંદણા કરી અને નમસ્કાર કર્યા વંદણ નમસ્કાર કરીને તેમને આ પ્રકારને प्रश्न पूछये।-"कहं भंते ! जीवा गरुयत्त हव्वमागच्छइ" हे भगवन् ! ! ક્યા કારણે કર્મભારથી યુકત થાય છે? 5. महावीर प्रभुने। उत्त२-" जयंती | पाणाइवाएण जाव मिच्छादसणसल्लेण" હે જયંતિ! જીવ પ્રાણાતિપાતથી હિંસાથી લઈને મિથ્યાદર્શનશલ્ય પર્યંતના ૧૮ પાપનું સેવન કરીને કર્મભારથી યુકતતા રૂપ ગુરુપણને પ્રાપ્ત કરે છે હવે ઉપસંહાર કરતા સૂત્રકાર કહે છે કે – ' “ एवं खलु जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति एवं जहा पढमसए जाव षीयीवयंति" उपयुत प्रासाथी सन मिथ्यानिशस्य ५यातना
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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