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________________ • प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १२ ४० १ सू० २ शङ्खभावकसरितनिरूपणम् ६८५ बाराहए भवई' ततः खलु श्रमणो भगवान् महावीर स्तेषां श्रमणोपासकानां तस्यां "व महातिमहालयायां समायां, पर्षदि धर्मकथा यावत् आज्ञाया आराधको भवति इति, “अस्थिलोए अस्थि अलोए” इतारभ्य " एतस्य धर्मस्य शिक्षायाम् उपस्थितः • श्रमणोपासको वा श्रमणोपासिका वा विहरन् आज्ञाया आराधको भवति' इति पर्यन्तम् औपपातिकसूत्रोक्ता - धर्मकथाऽत्रवाच्या । 'तपणं ते समणोवासगा समणस्स . भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म, सोचा, निसम्म हट्टतुट्ठा उडाए उट्ठेति' ततः ते श्रमणोपासका श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके समीपे धर्मं श्रुत्वा, 'निशम्य हृदि अवधार्य, हृष्टतुष्टाः उत्थया - उत्थानेन, उत्तिष्ठन्ति, ' उट्ठेत्ता समणं से दोनों हाथ जोड़कर उन्हों ने प्रभु की पर्युपासना की, 'तणं समणे -भगवं महावीरे तेसिं समणोवासगाणं तीसे य महतिमहालयाए सभाए धम्मका जाव आणाए आराहए भवह' इसके बाद प्रभु ने इस अतिविशाल सभा में उन श्रमणोपासकों को धर्मकथा कही, इस धर्मकथा 'का वर्णन ('एयस्त धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए समणोवासए वा समणो वासिया वा विहरमाणे आणाए आराहए भवद्द " ) यहां तक औपपातिक सूत्र के छप्पनवें सूत्र में कहा गया है सो उसे यहां पर कहलेना चाहिये। 'तणं ते समणोवासगा भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठा बढाए उट्ठेति' इसके बाद वे श्रमणोपासक श्रमण भगवान् महावीर के मुख से धर्मश्रमण कर और उसे हृदय में धारण कर बहुत ही अधिक हर्षित हुए एवं संतुष्ट चित्त हुए, बाद में I "" પતનું સમસ્ત अथन सहीं थडायु ४२ ले, "संपण' समणे भगव महावीरे तेसि समणोवासगाणं तिसे य महति महालयाए सभाए धम्मक हा जाव आणाए आराहए भवइ ત્યાર બાદ શ્રમણુ ભગવાન મહાવીરે તે વિશાળ સભામાં તે શ્રાવકને ધમકથા કહી. ઔપપાતિક સૂત્રના ૫૬માં સૂત્રમાં આ धर्मयातु वन आपवामां भाष्यु छे. " अस्थि लोए, भत्थि अलोए " मा सूत्रपाठथी श३ ४रीने " एतस्य धर्मस्य शिक्षायाम् उपस्थितः श्रमणोपासको वा श्रमणोपासका वा विहरम् विहरन्ती वा आज्ञाया आराधको भवति " म सूत्रपाठ पर्यन्तनो या सही 'धर्मस्था' १३ श्रषु हरवले. "तरण' वे समणोवासमा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निम्म हट्ठा उट्ठाए उट्ठेति " महावीर अलुनी सभी धर्मास्था सांभणीने तथा તેને હૃદયમા અવધારણ કરીને તેમને ઘણુા જ હું અને સતાષ થયે તેઓ
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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