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________________ - -- - -- - - भगवतीसूत्रे चित् नैरयिकाणां यदुत्पत्तिक्षेत्रं तदुष्णस्पर्शपरिणतमिति तेपामुष्णाऽपि योनिरस्ति, किन्तु नैरयिकाणां नोशीतोष्णा-मध्यमस्वभावा, द्विस्वभावा वा योनिरस्ति, तथा स्वभावत्वात् । तथाच शीतादियोनिप्रकरणार्थ सग्रहगाथा " सीओसिण जोणीया सव्वे देवाय, गब्भवती। उसिणाय ते उकाए दुहनिरए तिविह से सेम" ॥१॥ शोनोप्णयोनिकाः सर्व देवाश्च गर्भव्युत्क्रान्ताः। उष्णाच तेजस्काये, द्विधा निरये, त्रिविधा शेपेषु । तथैव-'कइविहाणं भंते । जोणी पण्णता ? गोयमा ! तिविहा जोणी पण्णत्ता, तं जहा-सचित्ता, अचित्ता, मीसिया' इत्यादि, कतिविधा खलु भदन्त ! योनिः आदि पृधिवियों में और चतुर्थ पृथिवीके कितनेक नरकावासों में नैरयिकों का जो उत्पत्ति क्षेत्र है वह उष्ण स्पर्श परिणत होता है इसलिये उनके उष्ण भी योनि होती है। क्योंकि यहाँ ऐसा ही स्वभाव है। शीतादि योनि के प्रकार के अर्थको कहनेवालीकी यह संग्रह गाथा है'सीओलिण' इत्यादि। समस्त देवों और गर्भज जीवों को शीतोष्णयोनि होती है तेज स्कायिकोंको उष्णयोनि होती है. नैरयिकों में शीत और उष्णयोनि होती है। बाकीके जीवोंमें - चार स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, अगर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यश्च और मनुष्य इनमें शीत, उष्ण और शीतोष्ण ऐसी त्रिविध योनि होती है ॥१॥ इसी प्रकारसे -'काविहाणं भते! जोणी पण्णत्ता' हे भदन्त! योनि कितने प्रकारकी कही गई है ? 'गोयमा' हे गौतम ! 'तिविहा जोणी पण्णत्ता' योनि तीन प्रकारकी कही गई है- 'त जहा' जैसेપ્રભા અને તમસ્તમપ્રભામાં તથા પંકપ્રભાના કેટલાક નરકાવાસમાં નરયિકનું ઉત્પત્તિ ક્ષેત્ર છે, તે ઉસ્પર્શ પરિણત હોય છે તેથી તે નરકોના નારકેને ઉનિ હોય છે, કારણ કે ત્યાં એવી જ પરિસ્થિતિ છે. શીતાદિ નિના प्रार्थना स अ या छ-" सीमोसिण" त्याल સમસ્ત દેને ગર્ભ જ છેને શીતેણનિ હોય છે તેજસ્કાયિકેને ઉષ્ણનિ હોય છે. નારકને શીત અને ઉષ્ણનિ હોય છે. બાકીના છામાં એટલે કે ચાર સ્થાવર, ત્રણ વિકસેન્દ્રિય, અગર્ભજ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને મનુષ્યમાં શીત, ઉષ્ણ અને શીણ, એ ત્રણ પ્રકારની નિ હોય છે. સૂ૦ ૧ છે मेरी प्रमाणे-"कइविहाणं भंते ! जोणी पण्णत्ता १" हे भगवन् ! योनि Real १२नी ४ी छ ? " गोयमा! तिविहा जोणी पण्णत्ता-तंजहा-सचित्ता,
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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