SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ટ भगवती सूत्रे , गौतमः पृच्छति-' से केणद्वेणं भने । एवं ब्लड' हे भदन्त । तत्-अथ केनार्थेन एवमुच्यते यन्- संहृतस्य खलु अनगारस्य पूर्वोक्तमकारस्य ऐयपथिकी क्रियते नो सांपरायिकी क्रिया क्रिवते ? भगवानाह - 'जहा सत्तमे सए पढमोदेसए जात्र सेणं अहातमेव रीयर से तेणद्वेगं जान जो संपराइमा किरिया कज्जइ गौतम ! यथा सप्तमेशतके मथमोदेश के कथनानुसारं यावत् - यस्य खलु क्रोधमानमायालोभाः व्युच्छिताः भवन्ति, तस्य खलु ऐर्यापथिकी क्रिया क्रियते, यस्य पुनः मानमा पालोमा अव्युच्छिन्ना भवन्ति, तस्य खलु सांवरायिकी क्रिया क्रियते, सूत्रं तं रीयमाणस्य ऐर्यापथिकी क्रिया क्रियते, उत्सूत्रं रीतं रीयमाणरय साम्परायिकी क्रिया क्रियते स खलु यथान आगमानतिक्रमणतएव रीयते हैं – 'सेकेणठ्ठेण भते ! एवं बुचह' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि पूर्वोक्त प्रकार वाले संवृत अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया होती है सांपरायिकी क्रिया नहीं होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं अहासुत्तमेव रीयइ से तेणट्टेण जाव णा संपराइया किरिया कजह' हे गौतम! जैसा सप्तम शतक के प्रथम उद्देशक में कहा गया है उसके अनुसार जिसका क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न हो गये हैं उसको ऐपिथिक किया होती है, और जिसके ये क्रोध, मान, माया और लोभ व्युच्छिन्न नहीं हुए हैं उसको साँपरायिकी क्रिया होती है, तथा यथासूत्र प्रवृत्ति करने वाले को ऐर्याथिक क्रिया होती है और उत्सूत्र - आगनविरुद्ध प्रवृत्ति करने वालेको मपरायिकी क्रिया होती है. इस प्रकार के साधु की प्रवृत्ति गौतम स्वाभीन। प्रश्न- " से केणट्टेणं भते । एवं वुच्चइ " हे भगवन् ! એવું આપ શા કારણે કહેા છે કે તે અણુગાર ઐોપથિકી ક્રિયા કરે છે, સાંપરાયિકી ક્રિયા કરતા નથી? भडावीर प्रभुना उत्तर- " जहा सत्तमे बए पढमासदेए जाव से णं अहासुत्तमेव रीयइ-से तेणठेणं जाव णो संपराइया किरिया कज्जइ " हे गौतम ! સાતમા શતકના પહેલા ઉદ્દેશામાં કહ્યા અનુસાર જેના ક્રાય, સાન માયા અને बोल व्युग्छिन ( नष्ट ) था गया हे, तेना द्वारा मैंर्यापथिट्टी दिया थाय छे, પરન્તુ જેના ક્રાધ, માન, માયા અને લાભ ક્ષીણ થયા નથી, તે સાંપરાયિકી ક્રિયા કરે છે. તથા સૂત્રની અજ્ઞા પ્રમાણે પ્રવૃત્તિ કરનાર દ્વારા ઐપથિકી ક્રિયા થાય છે અને ઉત્સૂત્ર-આગમ વિરૂદ્ધની–પ્રવૃત્તિ કરનારના દ્વારા સાંપરાયિકી ક્રિયા થાય છે. આવીગ્નિપથમાં રહીને ઉપયુક્ત રૂપાને દેખનાર સાધુની પ્રવૃત્તિ આગમ વિરૂદ્ધની હાતી નથી પણુ આગામાનુકૂલ જ હોય છે. હે ગૌતમ! તે કારણે
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy