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________________ ५८३ , " " मैचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ सू० ९ सुदर्शनचरितनिरूपणम् एवं चैव तन्निवि' असौवर्णिकान् सुवर्णरचितान् उत्कञ्चनदीपान् - ऊर्ध्वदण्डयुक्तान्दीपान् एवमेष- पूर्वोक्तरीत्यैव त्रीनपि दीपान् सुवर्ण-काय - सुवर्णरूप्य भेदात्, तथा च अष्टौ रुप्पमयानपि उत्कञ्चनदीपान्, अष्टौ सुवर्णरूप्यमयानपि उत्कञ्चनदीपान् अट्ट सोवन्निए थाळे, अट्ठ रुप्पम थाले अड्ड सुरण रुपमए थाले' अष्टी सौर्णिकान् - सुवर्ण निर्मितान् स्थालान्, अष्टौ रूप्यमयान् स्थालान् अष्टौ सुवर्णरूप्यमवान् रथालान् 'जड सोवणियाओ पत्तीओ, अट्ट रुप्पामयाओ पीओ, अह नगरुप्पास्याओ पत्तीओ' अष्टौ सौवर्णिकी :- सुवर्णनिर्मिताः पात्री : - लघुपात्राणि, अष्टौ रूप्यमयी पात्री:- लघुपात्राणि अष्ट सुवर्णरूप्यमयीः पात्री: - लघुपात्राणि ' अ सोवन्नियाई थासयाई, अद्व रुपामयाई थासया, अण्णरुपामयाई थासयाई' अष्टौ सौवर्षिकानि- सुपर्णनिर्मिचांदी दोनों के मेल से बने हुए ऊर्ध्वदण्ड ले आठ उत्कनण दीपक दिये इसमें बीच में दीपक रखे जाते हैं और ऊपर की ओर दण्डा निकला रहता है । ' अह सोचन्निए वाले, अहुरूप्पनए थाले, अट्ट खुण्णरूप्पनए थाले, आठ सोने के बने थाल, आठ चांदी के बने घाल, और आठ ही चांदी सोने के मेल से बने हुए थान दिये ' अड्ड मोवन्नियाओ पत्तीओ, अट्ठ रुप्पामयाओं अट्ठ सुवण्णरुपानयाओ पत्तीओ' आठ २ ही सोने के, चांदी के और सोने चांदी के मेल से बने हुए छोटे २ पात्र दिये 'अड्ड सोवन्नियाई, धासाह, अट्ठ रुप्पानयाई थालयाइ, अड्ड सुबण्णरुप्पा मयाई थासया' आठ ही सोने के बने हुए तालक दिघे आठ ही चांदी के बने हुए तासक दिये और आठ ही सोने चांदी के मेल से बने हुए तासक " પ્રમાણે સેાનાના, ચાંદીના અને સેાનાચાદીના બનાવેલાં આઠ માઢ ઉત્સુ ચણુद्वीप (हीवी थे।) दीघा, उत्थायु हीयम्मां वरये हीयो (बाटो) राभवामां આવે છે અને ઉપરની બાજુએ દડા જેવા ભાગ નીકળેલા રહે છે, " अट्ठ सोन्नि थाले, अरुप्पमए थाले, अट्ठ सुवण्णरुप्पमए थाले" साह सोनाना થાળ દીધા, આઠ ચાંદીના થાળ દીધા અને આઠ સુવર્ણ અને ચાંદીના (मन्नेना मिश्राशुथी मनावेला ) था हीधा. “ 'अट्ठ सोवन्नियाओ पत्तीओ, अष्टु सुवण्णरुपमयाओ पत्तीओ' मा सोनाना, आठ यांहीना भने साह सोनायांहीना नानां नाना पात्रो (बाटडीओ) हीथां. " अटु सोवन्नियाई थासयाई' अरुप्पामयाई थासयाई, अटु सुवण्णरुप्पामयाई थासयाई " म सोनानी બનાવેલી તાસકે. આઠ ચાહીની તાસકે અને આઠ સેાનાચાંદીની તાસકા દીધી, ા ત સકે! દજીના આકારની હાય છે જેને ‘ ડીશ’ કહેવામાં આવે છે,
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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