SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 604
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्रे ५८० 1 हत्थी, हत्थिष्पवरे, सव्वरयणमए सिरिघरपडिवए' अष्टौ हस्तिनः, इस्तिद्रवरान हस्तिषु श्रेष्ठान् सर्वरत्नमयान्- हस्तियोग्य रत्नमया भूपणसज्जितान्, अतएव श्रीगृहपतिरूपकान्, लक्ष्मीभाण्डागारतुल्यान, 'अद्वजाणाई, जाणप्पवराई' अष्टौ यानानि शकटादीनि यानमवराणि यानेषु श्रेष्ठानि, 'अड्ड जुगाई, जुगप्पचराई, एवं सिविया, एवं संदमाणीओ, एवं गिल्लीओ, थिल्लीओ,' अष्टौ युग्यानि - गोल्लदेशप्रतीतानि 'रिकशा' पदवाच्यानि जम्पानानि, युग्यमवराणि - युगेषु श्रेष्ठानि, एवं तथैव अष्टौ शिविकाः, -शिखराकाराच्छादित जपानरूपाः, एवं - तथैव अष्टौ स्यन्दमानिका:- पुरुषम माणजम्पानविशेषान् एवम् अष्टौ गिल्ली, अष्टौ थिल्ली, 'गिल्ली पिल्ली' इतिनामस्यानानि, 'अ वियड जाणाई, वियडजाणप्पवराई' - थे ' अ हत्थी हथिवरे, सव्वरयणामए सिरिघरपडिरुवए' आठ हाथी दिये जो समस्त हाथियों में श्रेष्ठ थे, एवं सर्वथा रत्नों के भूषणों से जो सुसज्जित थे और इसीलिये जो लक्ष्मी के भण्डार के समान थे 'अट्ट जाणाइ, जाणप्पवराह,' आठ शकट आदि यान (गाडी) दिये जो कि समस्त यानों से श्रेष्ठ थे 'अट्ठ जुगाई', जुगप्पवराह, एवं सिवियाओ, एवं संमाणीओ एवं गिल्लिओ, थिल्लिओ' गोल्लदेशप्रसिद्ध आठ रिक्शा दिये जो कि समस्त रिक्शाओं में उत्तम थे इसी प्रकार से शिखर के आकार के आच्छादित जपान रूप आठ शिविकाएँ दीं, पुरुषप्रमाण जम्पानरूप आठ स्यन्दमानिकाऍ दी जो कि समस्त स्यन्दमानिकाओं में श्रेष्ठ थीं आठ बिल्ली और आठ गिल्ली नामक धान विशेष दिये 'अड्ड वियडजाणा' विघड जाणप्पवराई' आठ 66 " घरपडिए " हाथी सोभा श्रेष्ठ सेवा आठ हाथी हीघा ते आठे हाथी लक्ष्मीना ભંડાર જેવાં અને સર્વ પ્રકારનાં રત્નાનાં આભૂષણેાથી સુસજ્જિત હતા. अट्ट जाणाइ, जाणवराई સમસ્ત યાનામાં શ્રેષ્ઠ એવા આઠે શકટ માર્દિ यान हीघां " अट्ठ जुगाई, जुगप्प राई, एवं सिवियाओ, एव संदमाणीओ, एव' गिल्लिओ, थिल्लिओ " गोल्स देशप्रसिद्ध आठ युग (रिक्षामा) हीधी, ने સમસ્ત રીક્ષાએ મા શ્રેષ્ઠ હતી, એજ પ્રમાણે સમસ્ત શિમિકાઓમાં શ્રેષ્ઠ એવી આઢ શિબિકાએ દીધી. શિખિકા (પાલખી) શિખરના આકારથી આચ્છાદિત હાય છે આઠ ઉત્તમમા ઉત્તમ સ્યન્તમાનિકાએ દીધી. સ્યન્દ્વમાનિકા પુરુષપ્રમાણુ મ્યાના રૂપ હાય છે, આઠ શ્રેષ્ઠ થિલ્લી અને આ શ્રેષ્ઠ ગિલ્લી દ્વીધી. થિલ્લી અને ગિલ્લી યાનવિશેષાનાં નામ છે “ अट्ठ वियडजाणाई'
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy