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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० ११ उ० ११ सू०४ सुदर्शनचरितनिरूपणम् ४९५ आवर्तयमानम्- आवर्तनं कुर्वाणम् एतादृशसुवर्णवतु ये वर्णतः, वृत्ते च गोलाकारे तडिदिव-विद्युदिव विमले-उज्ज्वले च सदृशे च परस्परेण द्वे अपि समाने नयनेनेत्रे यस्य त तथाविधम्, 'विसालपीबरोरु, पडिपुन्नविपुलखधं' निशालपीवरोरुम्-विशाले-बिस्तीर्णे, पीवरे-त्थूले, उरू-जङ्घ यस्य तं तथाविधम् , परिपूर्णों विपुलश्च स्कन्धो यस्य तं तथाविधम् , 'मिउविसयसुहुमलवखणपसत्थवित्थिन्न केसरसडोवसोभियं' मृदुविशदसूक्ष्मलक्षणपशस्तविस्तीर्णके शरसटोपशोभितम् - तत्र मृदवा-कोमला, निशदा:-एकैकशः स्पृष्टाः, सूक्ष्माः, लक्षणप्रशस्ता:-प्रशस्तलक्षणाः, विस्तीर्णा:-विकीर्णाः याः केमरसटा:-स्कन्धकेशच्छटास्ताभिरुपशोभितम् , 'उसियमुनिम्मिय सुजाय अफ्फोडियलंगूलं' उच्छ्रितमुनिर्मितसुजातास्फोटितलामलम्-उच्छ्रितम्-ऊपीकृतम्, सुनिर्मित-सुष्ठुअधोमुखीकृतम् , सुजातम्-शोभनातयाजातम् , आस्फोटितंच-यूमौ आस्फालितं लाल-पुच्छो येन तं तथाविधम् , 'सोम्यं, सोम्मागारं, लीलायंतं, जंभायंतं, नहयलाओ ओवयमाणं तपाया गया हो और आवर्त कर रहा हो थीं, तथा विजली के समान चमकीली थी और गोल थीं कहने का तात्पर्य यह है कि दोनों आंखें वर्ण की अपेक्षा उक्त सुवर्ण के जैसी थीं, गोल थीं और विजली के जैसी उज्ज्वल थीं। 'चिल्लालपीबरोरु, पडिपुन्नविपुलखंध' इसकी दोनों जंघाएँ विस्तीर्ण एवं स्थूल थीं, दोनों कन्धे परिपूर्ण और विपुल थे, 'मियविसयमुहमलक्खणपसस्थवित्थिनकेसरसडोक्सोभियं' इसकी केशरसटा-गर्दन के बाल-मृदु-कोमल थे, विशद आपस में एक दसरे से मिले हुए थे, सूक्ष्म थे, लक्षणों से प्रशस्त थे और इधर उधर गर्दन पर विखरे हुए थे, इनसे यह घड़ा सुहावना लगता था 'असियसुनिम्मियमुजायअप्फोडियलंगूलं' यह अपनी पूंछ को नीचे ऊँचे कर रहा था જેવી ચમકતી તથા ગળ-ગોળ તેની આખે હતી. આ કથનનું તાત્પર્ય એ છે કે બને આખોને વર્ણ તપ્ત સુવર્ણના જેવો હતો, આકાર ગોળ હતું मन तया विजीना वी तेवी ती. "विसालपीवरोरु, पडिपुन्नविपुलखध" नी मन्नत विशा अने २थूस ती, मने मन्ने मला विशाण मन परिपूतi "मियविसयसुहुमलक्खणपसत्यवित्थिन्नकेसरसडोवसोभियं" તેની કેશવાળીના વાળ કમળ, વિશદ–એક બીજાને મળેલા હતા, અને પ્રશસ્ત લક્ષણવાળાં હતાં, અને ગર્દન પર આમતેમ વિખરાયેલાં હતાં तसा त म सु१२ गत sat. “ ऊसिय सुनिम्मियसुजायअफोडियलगूल " ते पातानी पूछडीने यी नीयी ४२२wो तो मन भान ५२
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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