SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवतीने तथैव प्रतिपत्तव्या, 'सोमा जहा इंदा' सौम्या-उत्तरा दिक् , यथा ऐन्द्रीदिक पूर्वप्रतिपादिता तथैव प्रतिपत्तव्या, 'ईसाणी जहा अग्गेयी' ऐशानी-ईशानो देवता यस्याः सा ऐशानी विदिक्-ईशानकोणः यथा आग्नेयी विदिक्पूर्व प्रतिपा. दितातथैव प्रतिपत्तव्या, “विमलाए जीवा जहा अग्गेयीए " विमलायाम्अायां दिशि जीवा यथा आग्नेय्यां दिशि प्रतिपादितास्तथैव प्रतिपत्तव्याः, तथाच यथा आग्नेय्यां जीवानामनवगाहात् नोजीवाः, अपितु जीवदेशाः जीवप्रदेशाः भवन्ति, तथैव विमलायामपि जीवानामनवगाहात् नोजीवाः, अपितु जीवदेशा, जीवपदेशा च भवतीति भावः । 'अजीवा जहा दाए' विमलायाम् अग्गेयी' वायव्य विदिशाका कथन आग्नेयी विदिशाकी तरहसे जानना चाहिये. 'सोमा जहा इंदा' उत्तर दिशा जीवरूप भी है अजीव रूप भी है इत्यादि सब कथन उत्तर दिशाके संबंध ऐन्द्री पूर्व-दिशाकी तरह से ही कर लेना चाहिये । 'ईसाणी जहा अग्गेयी' ईशान विदिशाका कथन आग्नेयी विदिशाकी तरहसे जानना चाहिये, 'विमलाए जीवा जहा अग्गेयीए' जिस प्रकारसे आग्नेयी दिशामें ऐसा कहा गया है कि जीवोंकी यहाँ अवगाहना नहीं होती है इसलिये यहां जीव नहीं है अपि तु यहां जीवदेश है और जीवप्रदेश है उसी प्रकारसे विमला "दिशामें भी ऊर्ध्वदिशामें भी जीवोंकी अवगाहना नहीं हैं इसलिये वहाँ भी जीव नहीं है, किन्तु वहां जीवदेश और जीवप्रदेश है । इसलिये वह जीवदेशरूप भी और जीवप्रदेकरूप भी है । 'अजीवा जहा इंदाए' "वायव्वा जहा अग्गेयी" वायव्य विशिनु ४५न माया विशाना ४थन प्रभारी । सभा. " सोमा जहा इंदा" उत्त२ हिशानु थन पू દિશાના કથન પ્રમાણે સમજવું.. ', ईसाणी जहा अग्गेयी" शान विशानु थन मानेयी विशाला કથન પ્રમાણે સમજવું. ___“विमलाए जीवा जहा अग्गेयीए" विमलामा ( हशामा) 4 विषतुं કથન અગ્નિદિશા પ્રમાણે સમજવું. અગ્નિ દિશામાં જેમ જીવોની અવગાહના થતી નથી, તેમ ઉર્વ દિશામાં પણ જીવોની અવગાહના થતી નથી. તે કારણે અગ્નિ દિશાની જેમ ઉર્વ દિશામાં પણ જીવ નથી, પરંતુ ત્યાં જીવદેશ અને જીવપ્રદેશો હોય છે. તે કારણે ઉર્ધ્વ દિશા જીવદેશ રૂપ પણ છે અને જીવप्रदेश ३५ ५५ छ. " अजीवा जहा इदाए' Set Ai H७ विष
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy