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________________ भगवतीस्त्रे २४ प्रदेशाश्च सन्तीति भावः । अथच 'जे अजीवा ते दुविहा पण्णता, तंजहा-रूविअजीवाय अरूवि अजीवाय ' आग्नेय्यां दिशि ये अजीवाः सन्ति ते द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-रूप्यजीवाश्च, अरूप्यजीवाश्च, तत्र 'जे रूवी अजीवा ते वउविहा पण्णत्ता, तंजहा-खंधा जाव परमाणुपोग्गला ४ ' ये रूप्यजीवाः सन्ति, ते चतुविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-स्कन्धाः १, यावत-स्कन्धदेशाः २,स्कन्ध प्रदेशाः ३, परमाणुपुद्गलाश्च ४, 'जे अरूबी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता' आग्नेय्यां दिशि ये अरूप्य जीवाः सन्ति, ते सतविधाः प्रज्ञप्ताः, 'तंजहा-णो धम्मस्थिकाए-धम्मस्थिकायस्स देसे, धम्मत्थिकायस्स पएसा, एवं अधम्मस्थिकायस्स वि जाव आगासस्थिकायस्स पएसा अद्धासमए ' तद्यथा-नो धर्मास्तिकायः समस्त एवोच्यते, स च पंचेन्द्रियोंके प्रदेश होते हैं २, एकेन्द्रियों के प्रदेश होते हैं और अनिन्द्रिय जीवके प्रदेश होते हैं १, एकेन्द्रियों के प्रदेश होते है और अनिन्द्रिय जीवोंके प्रदेश होते है २, 'जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता तंजहा-रूवि अजीवा य अरूवि अजीवा य' आग्नेयी दिशामें जो अजीव है वे दो प्रकारके कहे गये है जैले एक रूपी अजीव और दूसरे अरूपी अजीव 'जे रूवी अजीवा ते चउचिहा पण्णत्ता' जो रूपी अजीष है वे चार प्रकारके कहे गये है जैसे 'खंधा जाय परमाणुपोग्गला' स्कन्ध १, स्कन्धदेश २, स्कन्धप्रदेश ३, और परमाणुपुद्गल ४, 'जे अरूपी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता' आग्नेयी दिशामें जो अरूपी अजीब है ये लात प्रकारके कहे गये है - 'तं जहा - णो धम्मस्थिमाए - धम्नस्थिकायरस देसे, धम्मत्थिकायस्स पएसा एवं अधम्मस्थिकायस्स वि जाष आगासस्थिकायस्स पएसा अद्धासमए' ना धर्मास्तिकाय - अखंड धर्मास्तिપ્રદેશો હોય છે એ જ પ્રમાણે તેમાં (૧) એકેન્દ્રિય જીના પ્રદેશો અને અનિન્દ્રિય જીવોના પ્રદેશો હોય છે. (૨) અથવા એકેન્દ્રિય જીના પ્રદેશ અને मनिन्दि च्वाना प्र हाय छे "जे अजीवा ते दुविहा पण्णत्ता-तनहाकनि अजीवा य, अरूवि अजीवा य" PALACशाम मे प्रारनामा छ-(1) ३५ म मन (२) २५३पी 24.01. "जे रूवि अजीवा ते चउव्विहा पण्णता-तंजहा-खंघो, नाव परमाणुपोग्गला" ३पी मवाना नीचे प्रमाणे यार १२ ४ा छ-(१) २४५, (२) २४५श, (3) २४५प्रदेश मन (४) ५२मा पुगत. “जे अरूवी अजीवा ते सत्तविहा पण्णत्ता तंजहा'' ममिहिशामा नीय प्रमाणे सात प्र४२ना मा २ा छ-' णो धम्मस्थिकाए-धम्मस्थिकायस्म देसे, धम्मत्थिकायस्सपएसा, एव अधम्मत्थिकायस्स वि जाव आगासस्थिकायस्सपएसा अद्धासमए” (१) । याताय- म स्तिय ३५ ते मसि
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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