SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 398
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ भगवती भवई' अज्ञाया आराधको भवति, "अयमाउसो अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते, एयस्य धम्मस्स सिकरवाए उवहिए, समणोवास एवा, समणोवासियादा विहरमाणे " इति संयोज्य अस्य विस्तृतवर्णनम् औपपातिकस्य पट्पञ्चाशत्तमे मुत्रे मत्कृतायां पीयूपवर्पिणीटीकायां विलोकनीयम् , 'तएणं से सिवे रायरिसी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा, निसम्म, जहा खंदओ जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ' ततः खलु स शिवो राजर्पिः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिके-समीपे धर्म श्रुत्वा, निशम्य-हदिअवधार्य, यथा स्कन्दको राजर्षिः द्वितीये शत के प्रथमोद्देशके प्रतिपादितस्थैवात्रापि शिवो राजपि. प्रतिपत्तव्यः यावउत्तरपौरस्त्य दिग्भागम्-ईशानकोणम् अपक्रामति, गच्छति, 'अबक्कमेत्ता सुवहुं लोहीलोहकडाह जाव किहिणसंकाईगं एगंते एडे', उत्तरपौरस्त्यं दिग्भागम् आराधक हो जाता है- इस पाठ तक 'अयमाउसो अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते, एयरस धम्मस्स सिक्खाए उवट्टिए, सनणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे' इस पाठ को योजित करके. इसका विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र के ५६ वे सूत्र की पीयूपवर्षिणी टीका में जो कि मेरे द्वारा रची गई है देख लेना चाहिये. 'तरणं से सिवे रायरिसी समणस्स भगवओ महावीरस्त अंतिए धम्मं सोच्चा, निसम्म, जहा खंदो, जाव उत्तरपुरत्थिमं दिसिभागं अवक्कमह' इसके याद वे शिवराजऋषि श्रमण भगवान् महावीर के पास धर्म श्रवण करके और उसे हृदय में धारण करके स्कन्दक के जैसे यावत् ईशान कोन में चले गये 'अवक्कमेत्तासुबहुं लोही लोहकडाह जाव किढिणसकाइगं एगंते एडेइ' वहां जाकर उन्होंने अनेक अपने लोही, लोहकटाह यावत् किढिणसंकायिक को-वंशनिर्मित पात्र विशेष को-एकान्त में रख दिया. 'एंगते “अयमोउसो अगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते, एयरस धम्मस्स सिक्खाए उवट्ठिए, समणोवासए वा समणोवासिया वा विहरमाणे" "तएण से सिवे रायरिसी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम सोच्चा, निसम्म, जहा खदओ, जाव उत्तरपुरथिम' दिसिभागं अवक्कमइ” ત્યાર બાદ તે શિવરાજત્રાષિ શ્રમણ ભગવાન મહાવીરની સમક્ષ ધર્મશ્રવણું કરીને તથા તેને હૃદયમાં ધારણ કરીને સ્કન્દની જેમ (થાવત્ ) ઈશાન કેણુમાં यादया गया. "अवकमित्ता सुबहुं लोहीलोहकडाह जाव किढिणसंकाइगं एगवे एडेइ" त्याने तेथे पोताना भने तपाई 11, ४४४ीमा, तांमार्नु કમંડળ અને કિઢિણ સંકાયિકને (વાંસનિર્મિત પાત્રવિશેષને) એકાન્ત સ્થાને
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy