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________________ 3 भगवती सूत्रे ३४४ दिशं प्रोक्षयति उत्तरस्याः दिशो वैश्रमणो महागजः प्रस्थाने प्रस्थितं शिवं राजर्षिम् अभिरक्षतुः शेषं तदेव यावत्, ततः पश्चाद् आत्मना थाहारम् आहरति ॥ म्र० २ ॥ शिवराजर्षिसिद्धि वक्तव्यता ॥ मूलम् - तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छहं छहेणं अनि क्खित्तेणं दिसाचकवालेणं जाब आयावेमाणस्स पगइभक्ष्याए जाव विणीययाए अन्नया कयाई, तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसणं ईहापोह मग्गणगवेसणं करेसाणस्स विभंगे नामं अन्नाणे समुत्पन्ने, सेणं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासइ, अस्सि लोए, सत्तदिवे, सत्तसमुद्दे, तेण परं न जाणइ, न पासइ, तणं तस्स सिस्स रायरितिस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव ससुप्पजित्था, - अस्थिणं ममं अइसेसे नाणदंसणे समुत्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए, सत्तदीवा, सत्तसमुद्दा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य, समुद्दा य, एवं संपेहेइ, संपेहित्ता, आयावणभूमीओ पञ्च्चोरुहइ, पच्चोरुहेत्ता, वागलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए, अनुसार ही सब कृत्य किया ऐसा अपने आप समझ लेना चाहिये परन्तु यहां पर उसने उत्तर दिशा का प्रोक्षण किया और उस दिशा के लोकपाल वैश्रमण महाराज से धर्मकार्य में प्रवृत्त हुए अपनी रक्षा करने की प्रार्थना की इस के बाद का और सब कथन जैसा पूर्वदिशा के प्रकरण में प्रथम पारणा के अवसर पर कहा जा चुका है वैसा ही जानना चाहिये इस के बाद अन्त में उसने पारणा किया || सू० २ ॥ વખતે તેણે ઉત્તર દિશામા જળતુ સિંચન કરીને ઉત્તર દિશાના લાકપ'લ વૈશ્રમણુ મહારાજને એવી પ્રાના કરી કે “ ધર્માંકા માં પ્રવૃત્ત થયેલા આ શિવ રાજર્ષિની આપ રક્ષા કરજો, '’ ત્યાર બાદનું સમસ્ત કથન પહેલા છટ્ટના પાણાના કથન અનુસાર સમજવુ. “ ત્યાર रीने पाराशु यु", " આ સૂત્રપાઠ સુધીનું ગ્રહણ કરવુ જોઇએ. ૫ સૂ૦૨ ! માદ તેણે પોતે લેાજન સમસ્ત થન અહી
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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