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________________ ३१३* - प्रचन्द्रिका टीका श०११ उ०९ ० १ शिवराजर्षिचरितनिरूपणम् नाम् पूर्वोपार्जितानां यथा तामलेः यावत्-गाथापते तृतीयशतकस्य प्रथमोदेश के प्रोक्तस्य वर्णनं तथा विज्ञेयम् । सुचीर्णानां सुविहितानां कर्मणां प्रभावी माहात्म्यं फलमित्यर्थः, यदहं पुत्रैः वर्डे, पशुभिः वर्डे, राज्येन बर्डे, 'एवं रद्वेणं, वलेणं, वाहणेणं, कोसेणं, कोडागारेणं, पुरेणं, अंतेउरेणं वट्टामि' एव पूर्वोक्तरीत्या राष्ट्रेण बलेन - सैन्येन, वाहनेन हस्त्यश्वादिना, कोशेन, कोष्ठागारेण, पुरेण, अन्तः पुरेण वर्दे, 'विपुलघणकणगरयण जाव संतसारसावएज्जेणं अई अईव अभिवामि विपुलधनकनकरत्न यावत् सत्सारस्वापतेयेन - विपुलं प्रधानं यद् धनं, कनकसू, रत्न यावत् सत्सारं स्वापतेयच पद्मरागादिरूपं धनम् - - तेन अतीवेति अतिशयम् अभिवर्द्धे, 'तं किं णं' अहं पुरा पोराणा जान एगंतसोखयं जाव पुतेहि वड्डाम, पहिं वड्डामि, रज्जेण बट्टामि' जैसा वर्णन तामलि के विचारों का संकल्प का तृतीय शतक के प्रथम उद्देशक में किया गया है उसी प्रकार से इस शिवराजा के भी विचारों का संकल्प का वर्णन यहां करना चाहिये तथा उसने ऐसा विचार किया कि मेरे पूर्वोपार्जित पुण्य कर्मो का ही यह प्रभाव है जो मैं पुत्रों से, पशुसंपत्ति से और राज्य से, बढ रहा हूँ ' एवं रहेणं, बलेणं, वाहणे ण, कोसेण, कोट्टागारेण पुरेण, अतेउरेण वदामि' एवं राष्ट्र से, बल से - सैन्य से- हस्ति, अश्व आदिरूप वाहन से, खजाने रूपकोश से, भंडार - रूप कोष्ठागार से, पुर से और अन्तपुर से बढ रहा हूँ 'विपुलवणकणगरयणजाव संतसारसावएजेण अई अईत्र अभिवामि' प्रधान धन से कनक से, रत्नों से, यावत् - सत्सारभूत पद्मरागादिरुप मणियों से खूब अच्छी प्रकार से बढ रहा हूँ 'तं किंण अहं पुरा पोराणाण સ’કલ્પનું જેવું વર્ણન કરવામાં આવ્યુ છે, એવી જ રીતે અહી શિવ રાજાના સ‘કલ્પનું પણ વર્ણન કરવું જોઇએ તે વર્ણન આ પ્રમાણે સમજવુ –તેણે એવા વિચાર કર્યાં કે પૂર્વપાર્જિત મારાં પુણ્યકર્મોના પ્રભાવથી મારા પુત્રાની, पशुसंपत्तिनी भने गल्यंनी वृद्धि था रही है. " एवं रट्टेण ं, वलेण ं, वाहणेण, कोसेण ं, कोट्ठागारेण', पुरेणं, अतेउरेण वामि " संने शल्यनी, सैन्यनी, હસ્તિ, અશ્વ આદિ રૂપ વાહનાની, ખજાના રૂપ કેશની ભ ડારરૂપ કાષ્ઠોરની, 'विपुलधणकणगरयण जाव પુરની અને અન્ત પુરની વૃદ્ધિ થઈ રહી છે. मंतसारसावजेण अव अभिवामि " वणी विपुल धन, उन, रत्न, पद्मराज आदि सारभूत धनथी हु अतिशय समृद्ध छु' “ तं किं अह पुरा परिणाण जाय एंगतसक्खियं उदेहमाणे विहरामि " तो शु पूर्वोपाति 3 9 66 T i ० ४० *
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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