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________________ भगवती सूत्रे २६६ उत्कृष्टेन तु असंख्येयानि भवग्रहणानि सेवेट, गतिमागतिं च कुर्यात्, 'कालादे से जो दो भोत्ता, उकोसेणं असंखेज्जं कालं, एवतियं कालं सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागर्ति करेज्जा' कालादेशेन काळापेक्षयातु जघन्येन द्वे अन्तर्मुहूर्ते, उत्कृष्टेन तु असंख्येयं कालम् - इयत्कालं सेवेत इयत्कालं गतिमागति कुर्यात्, गौतमः पृच्छति - ' से णं भंते! उप्पलजीवे आउजीवे ?' हे भदन्त ! सख उत्पलजीचः उत्पलजीवत्वं परित्यज्य अपूजीवो भवेत् - अकायिकतया उत्पद्येत, अथ च पुनरपि, उत्पलजीको भवेत् उत्पलजीवतया उत्पद्यत इति भवान्तरात् पुनस्तद्भनग्रहणे कियन्त कालं सेवेत ? कियन्तं कालं गतिमागतिं कुर्यात् ? दूसरा उस्पल में भवग्रहण करने में रहता है बाद में फिर यह मनुष्यादि गति में चला जाता है । और अधिक से अधिक असंख्यात भग्रहण तक रहता है और गमनागमन करता रहता है । 'कालादेसे जो दो अतोमुहुसा, उकोलेणं असंखेज्ज काल एवतियं कालं गतिरागति करेज्जा' तथा काल की अपेक्षासे जघन्यसे दो अंतर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट से असंख्यात कालतक रूप काल का सेवन करता है और इतने ही कातक वह गमनागमन करता है । अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते है 'से णं भंते ! उप्पलजीवे आजीवे' हे भदन्त ! वह उत्पलस्थ जीव उत्पल जीषरूपता को छोडकर यदि अप् जीवरूप से अपकायिकरूप से उत्पन्न हो जाता है और पुनः वह अपकायिकावस्था को छोडकर उत्पल जीवरूप से उत्पन हो जाता है - इस प्रकार भवान्तर से पुनः उस भवग्रहण करने में वह कितने काल का सेवन करता અને બીજું ઉત્પન્નબ ભય વ્રતુણુ કરવા સુધી રહે છે, ત્યાર બાદ તે મનુષ્યાદિ ગતિમાં જતા રહે છે અને વારેમાં વધારે સખ્યાત ભવગ્રહણુ સુધી રહે છે અને ગમનાગમન કરના રહે છે. कालादेसेण जहणेणं दो तो मुहुत्ता, उक्कोसेण असंखेज्ज' काले एइतिय काल सेवेज्जा, एवतियं कालं गतिरागति' करेज्जा " तथा हाजनी अपेक्षा ते गोछाभां સુધી અને વધારેમાં વધારે અસખ્યાત કાળનુ` સેવન કર્યા કાળ પન્ત તે ગમનાગમન કરતા રહે છે गोछा मे सुहूर्त કરે છે અને એટલા गौतम स्वाभीना प्रश्न -" सेण भंते । उप्पलजीचे आउजीवे ? ” हे ભગવન્ ! તે ઉત્પલસ્થ જીવે જે ઉત્પલપર્યાયને છેડીને અષ્ઠાયિક જીવ રૂપે ઉત્પન્ન થઈ જાય અને અાયિક પર્યાયને ઢેડીને ફરીથી ઉપલવ રૂપે ઉત્પન્ન
SR No.009319
Book TitleBhagwati Sutra Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages770
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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